अक्सर अंधेरी रातों से घर का पता पूछते हैं,
जो ख़ता की ही नहीं,आज वो ख़ता पूछते हैं।
जो छोड़ जाते हैं मुझे तन्हाईयों में अक्सर,
गैरों की चौखट पर जा,मेरी वफ़ा पूछते हैं।
शुक्र है,मैंने तालीम ली है चुप रहने की,
भावनाओं के रंगमंच पर वो मेरी अदा पूछते है ।
जब जुस्तजूँ ना रही किसी खोखले दिखावे की,
आज वो सारे शहर से,मेरी सदा पूछते हैं।