Sunday, November 7, 2021

पूछते हैं

अक्सर अंधेरी रातों से घर का पता पूछते हैं, 

जो ख़ता की ही नहीं,आज वो ख़ता पूछते हैं। 


जो छोड़ जाते हैं मुझे तन्हाईयों में अक्सर,

गैरों की चौखट पर जा,मेरी वफ़ा पूछते हैं। 


शुक्र है,मैंने तालीम ली है चुप रहने की,

 भावनाओं के रंगमंच पर वो मेरी अदा पूछते है ।


जब जुस्तजूँ ना रही किसी खोखले दिखावे की,

आज वो सारे शहर से,मेरी सदा पूछते हैं।



सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...