ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो,
अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो
मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है,
आखों से पिला दो तुम,शोख़ नजरों का पैमाना दो।
मुझे बेशक मिटा दो तुम,अपनी राहों की हकीक़त से,
जो यादों से सजाया था,मुझे गुज़रा वो ज़माना दो।
कभी तो रूठ जाया कर,मेरे इन तल्ख़ लहज़े पर,
मुझे तुमको मनाने का,झूठा ही सही, बहाना दो।
मेरी शामें गुजरती है,तेरी सोहबत की ख़्वाहिश में,
वो 'रौशन' सवेरा दो,इन पलकों का आशियाना दो।
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