परछाई उनकी,खुद के,हर ज़र्रे-ज़र्रे में देखते हैं,
उनकी इनायत से खुद को प्रबल देखते हैं;
वो शब्द नहीं, वो अर्थ नहीं, उनको परिभाषित करने को,
वो मातु-पिता हैं मेरे, उनमें खुदा देखते है।
उनकी उँगलियों को थाम,हमें चलने का ज्ञान मिला,
उनके होंठों की थिरकन से,वक्तव्यता का सज्ञान मिला;
अच्छे-बुरे कर्मों की नीति का महत्व उन्होंने ही बताया हैं,
सत्य-असत्य का भेद और उनसे ही अभिमान मिला।
विलक्षण आभा के धनी वो,मिला मुझको वरदान कोई ,
जीवन की कड़वाहट में जैसे बढ़ाता पियूष का मान कोई;
उनके सानिध्य में रहूँ हमेशा,ये मेरी अभिलाषा हैं,
उनके चरणकमलों सा पावन और नहीं स्थान कोई।।
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Parchhai unki khud ke har zarre-zarre mein dekhte hai,
Unki inayat se khud ko prabal dekhte hai;
Wo shabd nhi woh arth nhi unko paribhashit karne ko,
Woh matu-pita hai mere,unme khuda dekhte hai.
Unki ungaliyon ko thaam,hmein chalne ka gyan mila,
Unke hothon ki thirkan se,vaktawyata ka sagyan mila;
Achhe-bure karmo ki niti ka mahatva unhone hi btaya hai,
Satya-asatya ka bhed aur unse hi abhimaan mila.
Vilakshan aabha ke dhani woh,mila mujhko vardan koi,
Jeevan ki kadwahat mein,jaise badhata piyush ka maan koi;
Unke sanidhya mein rahu hmesha,ye meri abhilasha hai,
Unke charan kamlo sa paavan aur nhi sthaan koi