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Wednesday, September 30, 2020

वो मातु-पिता है मेरे

 परछाई उनकी,खुद के,हर ज़र्रे-ज़र्रे में देखते हैं,

उनकी इनायत से खुद को प्रबल देखते हैं;

वो शब्द नहीं, वो अर्थ नहीं, उनको परिभाषित करने को,

वो मातु-पिता हैं मेरे, उनमें खुदा देखते है।


उनकी उँगलियों को थाम,हमें चलने का ज्ञान मिला,

उनके होंठों की थिरकन से,वक्तव्यता का सज्ञान मिला;

अच्छे-बुरे कर्मों की नीति का महत्व उन्होंने ही बताया हैं,

सत्य-असत्य का भेद और उनसे ही अभिमान मिला।


विलक्षण आभा के धनी वो,मिला मुझको वरदान कोई ,

जीवन की कड़वाहट में जैसे बढ़ाता पियूष का मान कोई;

उनके सानिध्य में रहूँ हमेशा,ये मेरी अभिलाषा हैं,

उनके चरणकमलों सा पावन और नहीं स्थान कोई।।

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Parchhai unki khud ke har zarre-zarre mein dekhte hai,

Unki inayat se khud ko prabal dekhte hai;

Wo shabd nhi woh arth nhi unko paribhashit karne ko,

Woh matu-pita hai mere,unme khuda dekhte hai.


Unki ungaliyon ko thaam,hmein chalne ka gyan mila,

Unke hothon ki thirkan se,vaktawyata ka sagyan mila;

Achhe-bure karmo ki niti ka mahatva unhone hi btaya hai,

Satya-asatya ka bhed aur unse hi abhimaan mila.


Vilakshan aabha ke dhani woh,mila mujhko vardan koi,

Jeevan ki kadwahat mein,jaise badhata piyush ka maan koi;

Unke sanidhya mein rahu hmesha,ye meri abhilasha hai,

Unke charan kamlo sa paavan aur nhi sthaan koi




Monday, September 28, 2020

मैं स्त्री हूँ

 मैं स्त्री हूँ, मर्यादा ही मेरा स्वरूप हैं,

तुम्हारे चेहरे हज़ार होंगे,हमारा एक ही रूप हैं;


अपने कुल संस्कारों का ,चाहे बलि चढ़ा दो तुम,

चाहे कितनी अवज्ञा कर लो,चाहे आबरू मिट्टी में मिला दो तुम;

तुम्हारी हस्ती रहेगी काबिज़,प्रथा हमारी अनूप हैं;

पर मैं स्त्री हूँ,मर्यादा ही मेरा स्वरूप है।


शब्दों की सीमा का चाहे,लाख उलंघन कर लो तुम,

चाहे कितने तन से खेलो,चाहे जितनी मांगे भर लो तुम;

चाहे जो भी सोच लो तुम,होना तुम्हारे अनुरूप हैं,

पर मैं स्त्री हूँ, मर्यादा ही मेरा स्वरूप हैं।


संस्कार की ओट में,जितना चाहो अतिक्रमण करो,

मैं तो घर की शोभा हूँ, तुम देश विदेश भ्रमण करो;

महापातकी,पथभ्रष्ट और रूप तुम्हारा अघरूप हैं,

पर मैं स्त्री हूँ, मर्यादा ही मेरा स्वरूप है।।

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Main stree hu,maryada hi mera swaroop hai,

Tumhare chehre hazar honge,hmara ek hi roop hai;


Apne kool sanskaro ka,chahe bali chadha do tm,

Chahe kitni awagyan kar lo,chahe aabroo mitti me mila do tm;

Tmhari hasti rahegi kabiz,pratha hmari anoop hai,

Par main stree hu,maryada hi mera swaroop hai


Shabdo ki seema ka chahe,lakh ullanghan kar lo tm,

Chahe kitne tan se khelo,chahe jitni maange bhar lo tm;

Chahe jo v soch lo tm,hona tmhare anuroop hai,

Par main stree hu,maryada mera swaroop hai


Sanskar ki oat mein,jitna chaho atikraman karo,

Main toh ghar ki shobha hu,tum desh-videsh bhraman karo;

Mahapatki,pathbhrast aur roop tmhara aghroop hai,

Par main stree hu,maryada mera swaroop hai।।




Sunday, September 27, 2020

कर्म

कर भरोसा अपने कर पर,कर जितना तुझसे होता है;

अब जाग जा,हे मानव तू! क्यूँ इतना तू सोता सोता है।


मन को खुद ही जागृत कर,कर्म को अपना हथियार बना;

मत बैठ तू भाग्य भरोसे,वक़्त कहाँ संयोता है।


कर्मभूमि के महासंग्राम में,उठा शस्त्र,सशक्त बन;

लिख डाल तकदीर तू अपनी,जिसे ख़ुदा पिरोता हैं।।

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Kar bharosha apne kar par,kar jitna tujhse hota hai;

Ab jaag jaa,hey manav tu,kyun itna tu sota hai;


Man ko khud hi jagrit kar,karm ko apna hathiyar bna;

Mat baith tu bhagya bharose,waqt kahan sanjota hai;


Karmabhumi ke mahasangram mein,utha hathiyar,sashakt ban;

Likh daal takdeer tu apni,jise khuda pirota hai।।



Saturday, September 26, 2020

व्यथित कृषक

 व्यथित हूँ मैं, रहने दो! क्या तुम आसार लाये हो?

वसंत तो चली गई, क्या फिर बहार लाये हो?


अश्रुपूर्ण धारा के संग, कृषक अपनी गाथा सुनाता है;

फसल तबाही की एक झलक, नग्न आंखों से दिखलाता हैं।


काश! बात यहीं पर थम जाती, पर कुछ घाव गंभीर हुये;

कुछ हो गये मख़फ़ी, तो कुछ कृषक फ़कीर हुये।


कर्ज़े में डूबा हुआ कंधा, ये वजन ना झेल सका;

हवाले खूद को किया मौत के,पूरी पारी भी ना खेल सका।


आँखें मुंदें आज के नेता,खुद में ही तल्लीन हुये;

अपराध बोध तो नहीं हुआ,पर जुर्म कई  संगीन हुये।


सरकार शून्य है और मंसूबे आँख दिखाते हैं;

मुबारक हो! बे-इल्मी बे-पर्द लोग हमारा देश चलाते हैं।


छोड़ो भी!


व्यथित हूँ मैं, रहने दो! क्या तुम आसार लाये हो?

वसंत तो चली गई, क्या फिर बहार लाये हो?

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Vyathit hu main,rehne do! kya tum aasar laye ho?

Vasnt to chali gyi,kya phr bahar laye ho ?


Ashroopurn dhara ke sang , krishak apni gaatha sunata hai;

Fasal tabahi ki ek jhalak, nagn aankhon se dikhlata hai।


Kash baat yahin par tham jati, prr kuchh ghav gambhir huye; 

Kuchh ho gye makhfi, toh kuchh krishak faqir huye।


Karze mein dooba hua kandha, ye vajan naa jhel ska ;

Hawale khud ko kiya maut ke,puri paari v naa khel saka।


Aakhein munde aaj ke neta khud me hi talleen  huye ;

Apradh bodh toh nhi hua par zurm kai sangin huye।


Sarkar sunya hai, aur mansoobe aankh dikhate hai ;

Mubarak ho! be-ilmi be-pard log humara desh chalate hai।


Chhodo v !


Vyathit hu main, rehne do! kya tum aasar laye ho?

Vasnt to chali gyi,kya phr bahar laye ho?

Friday, September 25, 2020

एक कड़वा सच

 विकाशशील है भारत देश,

और कहने हैं कुछ बात प्रिये!


यहाँ नेताओं का बोलबाला है,

बस उनकी बजती राग प्रिये!


उनकी मंजिल बाट जोह रही,

हमारा कहाँ प्रशस्त मार्ग प्रिये?


वो कूलर-ए.सी. में सोते हैं,

हमारा मच्छर लेती जान प्रिये!


बेरोजगारी छाई युवको के सिर,

और क्या दें प्रमाण प्रिये?


उन अनपढ़ को पूजती देश,

हमारा कहाँ सम्मान प्रिये?


उनके हाथ नोटो की गड्डी, 

हमारा जीरो बैलेंस बढ़ाती शान प्रिये!


वो हवाई जहाज़ के शहनशाह,

हमारा टूट रहा आसमान प्रिये!


गर विकाशशील इसको कहते है,

तो इसे दूर से कोटि-सलाम प्रिये!



Thursday, September 24, 2020

मुक़ाम

                               दृश्य-1😢

अनजान सड़को पर यूँ चलना रास नहीं आता,

थक चुका हूं सहर,बारम्बार गिर कर संभलना रास नही आता ;

सुन ले जिंदगी लोग मुझे कायर कहने लगे है,

कोई कह दे उनसे ज़रा खुद के ज़ज़्बातों से बाहर निकले वो,

मुझे उनका मुझकर तोहमत लगाना रास नही आता।

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                                 दृश्य-2☺️  

नाकामी मिली तो क्या हुआ अभी और भी इम्तिहान बाकी हैं,

अभी दुनिया देखी ही कहाँ अभी तो सारा जहान बाकी हैं;

मेरे हौसले की ऊँचाइयाँ बड़े ही बुलंद हैं सहर,

फिर से लड़ेंगे हम अभी तो पाना मुक़ाम बाकी हैं।।



Tuesday, September 22, 2020

वो चाँद सी थी

वो चाँद सी थी, शीतलता का आँगन;
वो दर्पण में देखे, उन्हें देखें वो दर्पण।

खुशबू कली सी, वो रौनक परी सी;
उस चेहरे की छवि,कई ढूंढे है वन-वन।

मोहकता थी उनमें,भाव भंगिमा की धनी थी;
भोली थी इतनी,जैसे मृग कस्तूरी थी।

ना ईर्ष्या ना आशा,ना कोई कसक थी;
चाल मृगनयनी सी,शायद वो मेनका की सखी थी।।

Monday, September 21, 2020

ख़ुदा की बंदगी

अजल से अबद तक हमें उस खुदा की चाहत हैं;

अक़ीदा  है उनपे, और आंखों से इबादत है।

ये कायनात उनकी है, उन्हीं की मलकीयत भी है;
इख्तियार भी उनका, उन्हीं की असलियत भी है।

इस अय्यार दुनिया में,खुदा भी बन्दिशों में है;
चल मत चाल तू अपने,अभी तू गफलतों में है।

गर एहसास जो होता, तो कई सवालात ना आते;
चर्ख पर शम्स और  सितारे ना आते।

कुछ तो एहतियात कर,कुछ तो ख्याल कर;
वफा कर तो उनसे कर,कुछ मालूमात कर।

चैन की तो नींद उनसे ही आती हैं,
खुदा जो तेरे साथ है,तो फक्र बेमिसाल कर।

कोहसार हैं वो इस हयात के,
गर चढ़ सको,तो भरोसा बेशुमार कर।।
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##शब्द संकलन##
अक़ीदा:-भरोसा;अय्यार:-मायावी;चर्ख:-आसमान;शम्स:-सूरज
कोहसार:-पहाड़;हयात:-जिंदगी
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Sunday, September 20, 2020

राह-ए-वफ़ा

बड़ी तपिस थी उनकी लफ़्ज़ों में , 

हमने तो बस आईना दिखाया था । 

वक़्त बेवक़्त आरज़ू चांद की थी उन्हें , 

बड़ी जद्दोजहद से हमने उसे भी मुक्कमल कराया था ।। 


हमने सोचा हम तो शौक -ए -कामिल होंगे उनके लिए , 

पर उन्होंने दिलासा किसी और को दिलाया था । 

बेवजह तो शायद नहीं थी मेरी मोहब्बत , 

इस इश्क़ ने तो जीना सिखाया था ।।


ना तो वक़्त ठहरा , ना ही सोच बदली ;

धड़कनों को भी ठहरने का ऐहसास मैंने कराया था । 

बेज़ान से हुए इस रिश्ते की डोर को , 

एक बारगी फिर राह -ए -वफा तक लाया था ।।




सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...