Sunday, September 20, 2020

राह-ए-वफ़ा

बड़ी तपिस थी उनकी लफ़्ज़ों में , 

हमने तो बस आईना दिखाया था । 

वक़्त बेवक़्त आरज़ू चांद की थी उन्हें , 

बड़ी जद्दोजहद से हमने उसे भी मुक्कमल कराया था ।। 


हमने सोचा हम तो शौक -ए -कामिल होंगे उनके लिए , 

पर उन्होंने दिलासा किसी और को दिलाया था । 

बेवजह तो शायद नहीं थी मेरी मोहब्बत , 

इस इश्क़ ने तो जीना सिखाया था ।।


ना तो वक़्त ठहरा , ना ही सोच बदली ;

धड़कनों को भी ठहरने का ऐहसास मैंने कराया था । 

बेज़ान से हुए इस रिश्ते की डोर को , 

एक बारगी फिर राह -ए -वफा तक लाया था ।।




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सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...