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Thursday, January 12, 2023

सोहबत


ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो,
अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो

मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है,
आखों से पिला दो तुम,शोख़ नजरों का पैमाना दो।

मुझे बेशक मिटा दो तुम,अपनी राहों की हकीक़त से,
जो यादों से सजाया था,मुझे गुज़रा वो ज़माना दो।

कभी तो रूठ जाया कर,मेरे इन तल्ख़ लहज़े पर,
मुझे तुमको मनाने का,झूठा ही सही, बहाना दो।

मेरी शामें गुजरती है,तेरी सोहबत की ख़्वाहिश में,
वो 'रौशन' सवेरा दो,इन पलकों का आशियाना दो।







Friday, December 30, 2022

बिखरे हैं

कहीं छूटा वफ़ा मेरा,कहीं जज़्बात बिखरे हैं,
कहीं इश्क़ पर चर्चे हो,कहीं मेरे बात बिखरे हैं।

कुछ कश्तियों के मुकद्दर में साहिल कहाँ होती,
कहीं समंदर की बेचैनी,कहीं मुलाकात बिखरे हैं।

मैंने कई नींद जागी है वफ़ा कर चांदनी के संग,
कहीं ख़्वाब सोया रह गया,कहीं रात बिखरे हैं।

वादों की स्याही से खुद की एक उम्र लिख देना,
कहीं बे-ज़ार होता दिल,कहीं एतमात बिखरे हैं।

अहद ए रफ्ता 'रौशन' महज़ एक हिकायत रह गई,
कहीं कत्ल उल्फत का,कहीं इल्तिफात बिखरे हैं।








Saturday, December 24, 2022

सफर ना पूछ

तू साहिल का पता ले ले,मौजों का सफर ना पूछ,

यूं देकर हवाला सुबह का,रातों का सफर ना पूछ।


भले तू पूछ ले मुझसे सबब मेरे इन सर्द लहजे का,

मोहब्बत का पता ले ले,मोहब्बत का असर ना पूछ।


जो पलकों पर सजाया था,वो सारे ख़्वाब तू ले जा,

जो यादों में उतरती हो, वो बहकी सी नज़र ना पूछ। 


चैन-ओ-सुकूं का हर कतरा,लूटा आया मैं सब उसपर

अज़िय्यत रास अब मुझको,राहत की ख़बर ना पूछ।


अगर तू जानना चाहे मेरे माज़ी की हकीकत को,

इन आँखों में उतर जा तू,किसका है ये घर ना पूछ।


चराग़ाॅं जलाना छोड़ दे,'रौशन' यहाँ कुछ भी नहीं,

फ़क़त यहाँ रात हुई अपनी,हुई कैसे सहर ना पूछ।



Monday, December 19, 2022

तुम भूले हम याद करें

 मौन पड़े कुछ वायदे है,तुम भूले हम याद करें,

वक्त ने तेवर बदले हैं,हम सोचे,हम याद करें।


तेरी हर बात झूठी थी,तेरे जज़्बात थे नकली,

कुछ मौसमी ये रिश्ता था,कुछ बातें हम याद करें।


जरूरत मुकम्मल होते ही,हजारों ऐब अब मुझमें 

पहले आँख पर पट्टी थी,तुम सोचो हम याद करें।


फासले बढ़ाने को गर बस बहाने की जरूरत थी,

तुम पहले ही कह देते,बाकी क्या अब याद करें।


मैं शर्मिंदा हूं खुदपर कि मेरे कोहिनूर के दामन में,

जगह पत्थर की तो न थी,मैं क्या था क्या याद करें।


अंधेरे की आगोश में,ये 'रौशन' चिराग बुझ गया,

कोई चाहत नहीं बाकी,तुमको भूलें,ना याद करें।



Thursday, December 1, 2022

शजर लगता है

मेरा बिखरा हुआ सा इश्क़, एक पुख़्ता बहर लगता है,

मेरे उजड़े से गुलशन में भी फूलों का शजर लगता है।


 यकीनन ख़ाक हो जाओगे, मेरी पनाह के ख़्वाहिश में

 मुझे मेरा ठिकाना भटकता हुआ दर-बदर लगता है।


 क्यूँ भला मैं दर्द में हूँ और इन आँखों में नमी कैसी ?

 हो ना हो ये किसी के यादों का तल्ख़ असर लगता है।


 इन आँसुओं के सैलाब से कहीं समन्दर ना बन जाऊँ, 

इल्तिजा है रोक लो अब इन आईनों से डर लगता है।


 आफताब की किरणें भी, ठहर सी जाती है कहीं दूर,

 मुझे बस मेरे ख़्वाबों में, "रौशन" मेरा सहर लगता है।



Friday, November 25, 2022

मैं और तुम


 मैं दावानल सा धधकता हूं,तुम सावन की फुहार हो जाती,

मैं मकरंद, कली पर सिंचित और तुम रेशम की हार हो जाती।


परा प्रकृति की गोद में जब भी अतिक्रमण विस्तारित होता ,

मैं अकाट्य तिलिस्म हो जाता,तुम वीणा की तार हो जाती।


सहस्र द्वंदो से घिरा जब साहित्यिक चेतना हो सुप्त किंचित,

मैं बिहारी की कविता हो जाता,तुम नैसर्गिक श्रृऺगार हो जाती।


 चंचलता के अभिभूत चित जब विरक्ति का मार्ग प्रशस्त करे,

मैं बहिर्मुखी अंतस का साधक,तुम विशिष्ट प्रत्याहार हो जाती।


बलि के बेदी पर शीश झुकाए जब धर्म हो निःशब्द खड़ा,

मैं गीता का ज्ञान हो जाता और तुम अभेद्य हुंकार हो जाती।


जब मानवता का लोप हो,मर्यादा अपनी लाज बचाती हो,

मैं काल भैरव का रौद्र रूप,तुम पिनाक की टंकार हो जाती।







Wednesday, August 24, 2022

चिंगारी

 वक़्त ठहरा रहा शब भर,फिर ये शाम कैसे हो? 

किसी का दिल मचलता हो,तुम्हें आराम कैसे हो? 


ताज़्जुब नहीं मुझको,तेरा मौके पर बदल जाना, 

जहाँ चिंगारी भड़कती हो,वहाँ एहतराम कैसे हो? 


नसीहतें ज़माने की अबके जिगर के पार होती है

जिसका ठौर उससे छीन गया,फिर क़याम कैसे हो? 


गर ख़लिश कहीं होती, तो आँखों में उतर आती, 

तेरा सर्द लहजा हो तो होठों पर पयाम कैसे हो? 


गर्द-ए-राह की मौज़ में,संभलते भी भला कैसे, 

जहाँ तहरीर बदलती हो,वहाँ फिर नाम कैसे हो? 


तेरी इन शोख़ बातों ने, मुझे पत्थर का बना डाला, 

किसी की जालसाज़ी में, रौशन मक़ाम कैसे हो? 















सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...