Friday, December 30, 2022

बिखरे हैं

कहीं छूटा वफ़ा मेरा,कहीं जज़्बात बिखरे हैं,
कहीं इश्क़ पर चर्चे हो,कहीं मेरे बात बिखरे हैं।

कुछ कश्तियों के मुकद्दर में साहिल कहाँ होती,
कहीं समंदर की बेचैनी,कहीं मुलाकात बिखरे हैं।

मैंने कई नींद जागी है वफ़ा कर चांदनी के संग,
कहीं ख़्वाब सोया रह गया,कहीं रात बिखरे हैं।

वादों की स्याही से खुद की एक उम्र लिख देना,
कहीं बे-ज़ार होता दिल,कहीं एतमात बिखरे हैं।

अहद ए रफ्ता 'रौशन' महज़ एक हिकायत रह गई,
कहीं कत्ल उल्फत का,कहीं इल्तिफात बिखरे हैं।








No comments:

Post a Comment

सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...