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Thursday, September 24, 2020

मुक़ाम

                               दृश्य-1😢

अनजान सड़को पर यूँ चलना रास नहीं आता,

थक चुका हूं सहर,बारम्बार गिर कर संभलना रास नही आता ;

सुन ले जिंदगी लोग मुझे कायर कहने लगे है,

कोई कह दे उनसे ज़रा खुद के ज़ज़्बातों से बाहर निकले वो,

मुझे उनका मुझकर तोहमत लगाना रास नही आता।

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                                 दृश्य-2☺️  

नाकामी मिली तो क्या हुआ अभी और भी इम्तिहान बाकी हैं,

अभी दुनिया देखी ही कहाँ अभी तो सारा जहान बाकी हैं;

मेरे हौसले की ऊँचाइयाँ बड़े ही बुलंद हैं सहर,

फिर से लड़ेंगे हम अभी तो पाना मुक़ाम बाकी हैं।।



सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...