वो चाँद सी थी, शीतलता का आँगन;
वो दर्पण में देखे, उन्हें देखें वो दर्पण।
खुशबू कली सी, वो रौनक परी सी;
उस चेहरे की छवि,कई ढूंढे है वन-वन।
मोहकता थी उनमें,भाव भंगिमा की धनी थी;
भोली थी इतनी,जैसे मृग कस्तूरी थी।
ना ईर्ष्या ना आशा,ना कोई कसक थी;
चाल मृगनयनी सी,शायद वो मेनका की सखी थी।।
Really hearttouching❤️👌👍
ReplyDeleteShandaar
ReplyDeleteIt's full of felling.
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