इन मखमली सी रातों में फिर से कोई याद आया हैं,
बुझे हुए चिंगारी को किसी ने आग लगाया हैं।
यूँ तो हर रोज़ ही गुफ़्तगू होती है तन्हाई से,
पर आज इन तन्हाइयों ने भी में मेरा मजाक बनाया हैं।
शायद हवाओं ने भी रुख बदल लिया है आज,
सबने ही किसी खालीपन का एहसास दिलाया हैं।
अब तो मैं कहीं खोने से भी नहीं डरता,
मुझे मेरी राहों ने ही भटकना सिखाया हैं।
Kumud Ranjan
ReplyDeleteआपका आभार
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