मेरे पेशानी पर तेरा आज नाम देखा है,
छुपे इश्क़ को बस्ती में सरेआम देखा है।
ना काबिल रहा अरसे तलक जमाने में
पलकों तले आज,अपना क़याम देखा है।
मुद्दतों बाद कहीं ठहरी रही मेरी साँसें
तेरी क़ुर्बत में,आज वो आराम देखा है।
अब डर नहीं लगता,किसी आज़माइश से
कई दफ़ा मैंने,मेरा यूँ कत्लेआम देखा है।
रौशन सी इन राहों में कभी सब्र भी करना,
सुबह के फ़साने में,कहीं एक शाम देखा है।
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