मेरी मोहब्बत की एक मुकम्मल किताब हो तुम,
मेरे बेतरतीब ज़िंदगी की सुलझी हिसाब हो तुम;
हम पूछते रहे ज़माने से,क्या है इश्क़ की परिभाषा,
मेरे इन सवालातों का एक खूबसूरत जबाब हो तुम;
तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने मुझे यूँ कर दिया बिस्मिल,
किसी जन्नत की हूर हो या फिर माहताब हो तुम;
अब शिकायत कहाँ रही,बहारों के बे-रूखी से,
मैं रक़्स करूँ जिसपर,वो हसीन गुलाब हो तुम;
एक उम्र की नींद अता फरमा,गर हक़ीक़त तू नही,
फिर इस नींद से जागूं ना,गर निहायत ख़्वाब हो तुम;
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