Saturday, August 20, 2022

माहताब हो तुम

 मेरी मोहब्बत की एक मुकम्मल किताब हो तुम, 

मेरे बेतरतीब ज़िंदगी की सुलझी हिसाब हो तुम;


हम पूछते रहे ज़माने से,क्या है इश्क़ की परिभाषा, 

मेरे इन सवालातों का एक खूबसूरत जबाब हो तुम;


तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने मुझे यूँ कर दिया बिस्मिल, 

किसी जन्नत की हूर हो या फिर माहताब हो तुम;


अब शिकायत कहाँ रही,बहारों के बे-रूखी से, 

मैं रक़्स करूँ जिसपर,वो हसीन गुलाब हो तुम;


एक उम्र की नींद अता फरमा,गर हक़ीक़त तू नही, 

फिर इस नींद से जागूं ना,गर निहायत ख़्वाब हो तुम;




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