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Saturday, August 20, 2022

माहताब हो तुम

 मेरी मोहब्बत की एक मुकम्मल किताब हो तुम, 

मेरे बेतरतीब ज़िंदगी की सुलझी हिसाब हो तुम;


हम पूछते रहे ज़माने से,क्या है इश्क़ की परिभाषा, 

मेरे इन सवालातों का एक खूबसूरत जबाब हो तुम;


तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने मुझे यूँ कर दिया बिस्मिल, 

किसी जन्नत की हूर हो या फिर माहताब हो तुम;


अब शिकायत कहाँ रही,बहारों के बे-रूखी से, 

मैं रक़्स करूँ जिसपर,वो हसीन गुलाब हो तुम;


एक उम्र की नींद अता फरमा,गर हक़ीक़त तू नही, 

फिर इस नींद से जागूं ना,गर निहायत ख़्वाब हो तुम;




Monday, August 15, 2022

तेरी कुर्बत

 मेरे पेशानी पर तेरा आज नाम देखा है, 

छुपे इश्क़ को बस्ती में सरेआम देखा है। 


ना काबिल रहा अरसे तलक जमाने में

पलकों तले आज,अपना क़याम देखा है। 


मुद्दतों बाद कहीं ठहरी रही मेरी साँसें

तेरी क़ुर्बत में,आज वो आराम देखा है। 


अब डर नहीं लगता,किसी आज़माइश से

कई दफ़ा मैंने,मेरा यूँ कत्लेआम देखा है। 


रौशन सी इन राहों में कभी सब्र भी करना, 

सुबह के फ़साने में,कहीं एक शाम देखा है। 






Monday, December 27, 2021

इल्ज़ाम न दो

 रंज-ओ-गम से लबरेज़ हूँ,अब और इल्ज़ाम न दो। 

बे-ख़्याली में रहने दो, अब दर्द तमाम न दो। 


इश्क़ के हुक्मरानों से,बस एक गुज़ारिश आखिर में, 

टूट रहा हो जो तारा, उसे उसका आसमान न दो। 


दिल-ओ-दीवार फांदकर,क्यूँ आते हो,मेरे तस्सवुर में,

राहत-ए-सफर में यूँ आकर, अब और विराम न दो। 


तेरी जफ़ाओं के मंज़र,आज दफ़्न पड़े हैं कब्रों में, 

इन बेहिसी के किस्से को, अब नया मक़ाम न दो।


दश्त-ए-तन्हाई में गुजरी हैं,कई वस्ल की रातें, 

'रौशन' सवेरा करने को,अब बेकसी का नाम न दो। 





Saturday, May 22, 2021

सजदा इश्क़ का

हलक में जान अटकी तो लबों पर बात आ गई,

मयकदे से अभी निकला और मोहब्बत साथ आ गई ।


ज़रा कोई मौत से कह दो रोके कदम अपनी,

मयस्सर इश्क़ हुआ मेरा,मेरी हयात आ गई।


मुख़्तसर ही सही,ठहरी जो नज़र उनपे,

लगा जैसे मुझे नज़र सूरत-ए-कायनात आ गई।


किसी का चाँद आया था अपनी वफ़ा लेकर,

सजदा इश्क़ का करने,तारों की बारात आ गई।


अंधेरे में जो मैं निकला "रौशन" शमा करने,

अभी तो लौ जलानी थी तभी बरसात आ गई।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

मयकदे-मदिरालय;मयस्सर-प्राप्तयहां होना;हयात-ज़िन्दगी; मुख़्तसर-थोड़ा;शमा-दीया

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★



Monday, May 17, 2021

छोड़ दो

 खुद के अश्क़ों को मुझसे छुपाना छोड़ दो,

रातों की खामोशियों में खुद को जगाना छोड़ दो।


हम पी लिया करेंगें कड़वे साँसों के घुट भी,

तुम अपने जज्बातो को मीठी चासनी में डुबाना छोड़ दो।


बड़ी हिफाज़त से रखेंगे तुम्हें इश्क़ के आँगन में,

यूँ अनजान सी राहों में खुद को भुलाना छोड़ दो।


हर शख्स आश्ना हो ये जरूरी तो नहीं,

यूँ गैरों के ज़ख्मों पर मरहम लगाना छोड़ दो।


तुम्हारी हिफाज़त तो "रौशन"फ़िज़ा भी करेंगे,

फक़त इन अंधेरों से आँखें चुराना छोड़ दो।



Sunday, February 7, 2021

खुद में कमी ढूँढते हैं

 ताउम्र शिकायत रही औरों से,आज खुद में कमी ढूँढते हैं,

वफ़ा-ओ-ख़ुलूस हो जिसमें,चलो ऐसा हमीं ढूँढते हैं।


नक़्श-ए-पा भी नहीं दिखते,उठते अब्र के दरम्यां,

औरों के आसमां से उतर, खुद की ज़मीं ढूँढते हैं।


शायद कोई तो होगा बा-वफ़ा इस जहां में,

मौसम-ए-ख़ुश्क जहां में,कहीं नमी ढूँढते हैं।


गर लुत्फ़-ए-ख़लिश से रु-ब-रु आता हो कोई,

खता तो यहाँ है,फिर क्यूँ कमी ढूँढते हैं।


भले रातों को "रौशन"करता हो दीया,

मगर सुबह की झलक हम लाज़मी ढूँढते हैं।
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                        शब्द संकलन:-
वफ़ा-ओ-ख़ुलूस-sincerity and affection; हमीं-friend; नक़्श-ए-पा-footprint;अब्र-cloud; बा-वफ़ा-faithful;मौसम-ए-ख़ुश्क-dry weather; लुत्फ़-ए-ख़लिश-pleasure of pain;
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Monday, December 28, 2020

टूटकर बिखर जाएंगे

उम्मीद थी तेरी उम्मीदों पर खड़ा उतर जाएंगे,

खबर कहाँ थी मुझे,यूँ आँखों से उतर जाएंगे


तेरी उल्फ़त के कायल कुछ इस क़दर रहें हम,

गर बहक भी गए तो भी सँवर जाएंगे;


कभी वक़्त बेरहम रहा,कभी गुनाहगार हम भी हुए,

हार गए जीती हुई बाजी,अब किधर जाएंगे;


अब मेरा हँसना भी गवारा नहीं होता कइयों को,

बैठूँ गर खामोशियों के आँगन में,तो भी अखर जाएंगे;


हिम्मत ही नहीं होती फिर आगाज़ करने की,

गर अब हारें तो बेशक टूटकर बिखर जाएंगे।



Tuesday, November 17, 2020

सावन को तरसते देखा है

 हमने बारिश के लिए सावन को तरसते देखा है,

गुमसुदा यादों को यादों में नीरसते देखा है।


कुछ सोच जो  बाँह पसारे मेहमानवाजी किया करते थे, 

उन आरजूओं को दिल के किसी कोने में सिसकते देखा है।



जिनके होंठों पर कभी राज हुआ करता था हंसी का,

उन्हें बेसुध सा पड़ा हुआ कराहते देखा है।


जो हमनवा हुआ करते थे अनेकों दिलों के,

उन्हें अंजान राहों पर अकेले भटकते देखा हैं।


वो आंखें जो इबादत हुआ करती थी किसी की,

उन आंखों में आब-ए-चश्म को उमरते देखा है।


कोई इल्तला करें ख़ुदा को उनकी बेबसी से,

कई सुलझे से पहलुओं को खुद में उलझते देखा है।


जिनका "रौशन" हुआ करता था खुशियों का घरौंदा,

उन्हें दुखों की फर्श पर टूटकर बिखरते देखा है।

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Humne barish ke liye sawan ko taraste dekha hai, 

Gumsuda yaado ko yaado mein niraste dekha hai.    


Kuch soch jo baanh  pasare mehmannawaji kiya karte the, 

Un aarzuon ko dil ke kisi kone mein sisakte dekha hai.   


Jinke hotho par kabhi raaz hua karta tha hansi ka,

Unhe besudh sa pada hua karahte dekha hain.  


Jo humnawa hua karte the aneko dilon  ke, 

unhe anjan raho par akele  bhatakte dekha hain.  


Woh ankhein jo ibadat hua karti thi kisi ki, 

Un ankhon mein aab-e-chasm ko umarte dekha hain.    


Koi iltalla kare khuda ko unki bebasi se, 

Kai suljhe se pehluo ko khud mein ulajhte dekha hain. 


Jinka "Raushan" hua karta tha khushiyon ka gharaunda,

Unhe dukho ki farsh par tutkar bikharte dekha hain..




Sunday, November 1, 2020

मेरे पहलू में बैठों

 क़यामत ढ़ा जाती है,तेरी नज़रों का मिलाना,

पलकों को गिराकर,यूँ पलकों का उठाना।


हाथों में सुमन हैं, रखते दिल में हैं खंज़र,

घायल ना कर जाए,ये कातिल ज़माना।


रवायत-ए-ज़माने में,मैं भी हूँ शामिल,

फँसा गया है मुझको,मेरा ही फ़साना।


वो अफ़साने,जो संभाले ना संभलें,

मेरे पहलू में बैठों और आँखों से सुनाना।


तेरी धड़कनों पर दस्तक़ हो मेरी,

बहुत याद आये, मुझे तेरा हँसाना।


गर रूठे कभी हम, एक-दूसरे से,

मैं तुमको मनाऊँ और तुम मुझको मनाना।


होती है शामें,"रौशन" तुम्हीं से,

बुझा दूँ दीया,कर रातों का बहाना।।

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Kayamat dha jati hai, teri nazron ka milana, 

palko ko girakar, yun palkon ka uthana।


Hatho mein suman hain, rakhte dil mein hain khanjar,

ghayal na kar jay,  ye katil jamana।


Rawayat-e-jamane mein, main bhi hun shamil,

fasa gaya hain mujhko, mera hi fasana। 


Wo afsane, jo sambhale na sambhle ,

mere pehlu mein baitho aur ankho se sunana ।


Teri dhadkano par dastak ho meri, 

bahut yaad aaye, mujhe tera hasana । 


Agar ruthe kabhi hum , ek dusre se, 

main tumko manaun aur tum mujhko manana।


Hoti hain shamein, "Raushan" tumhi se, 

bujha dun diya, kar rato ka bahana।।



Wednesday, October 28, 2020

बेरुखी अच्छी

 इश्क़ के छलावे से आपकी बेरुखी अच्छी, 

जहाँ जज्बात शून्य हो,वहाँ आपकी कमी अच्छी।


जहाँ बात होती हो फक़त इश्क़-ए-मजाज़ी की,

खुद को चूमकर,खुदी से दिल्लगी अच्छी।


ढूँढ लें उसे जिसमे छवि कायनात की दिखती हो,

जिसे इंतज़ार हो आपका,वो इश्क़-ए-हक़ीकी अच्छी।


गर इंतज़ार लंबा हो,आप सब्र कर लेना,

आरज़ू-ए-मोहब्बत में ये तिश्नगी अच्छी।


हमेशा चाँद सा "रौशन" रहे, आपका नूरानी चेहरा,

आपके हिलते लबो पर ये हँसी अच्छी।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

फक़त-सिर्फ/only; इश्क़-ए-मजाज़ी-शारीरिक प्यार/physical love;इश्क़-ए-हक़ीकी-divine love; तिश्नगी-प्यास/thirst

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Ishq ke chhlave se aapki berukhi achhi,

Jahan zazbat sunya ho,wahan aapki kami achhi.


Jahan baat hoti ho,fakat ishq-e-mazazi ki,

Khud ko chumkr,khudi se dillagi achhi.


Dhundh lein usse,jisme chhavi kaynat ki dikhti ho,

Jise intzar ho aapka,woh ishq-e-hakiki achhi.


Gar intzar lamba ho aap sbra kar lena,

Aarzu-e-mohabbat mein,ye tishnagi achhi.


Hmesha chand sa "raushan" rhe aapka noorani chehra,

Aapke hilte labon pr ye hasi achhi





Saturday, October 24, 2020

लाज़मी लगा

 तुम्हारें अरमानों की वादियों में तुम्हें छोड़ आना लाज़मी लगा,

जो बंधन कभी थे ही नहीं, उन्हें तोड़ आना लाज़मी लगा ।


मेरी ख़्वाहिश तेरे नयनों में,हमें देखने की थी,

जब ढूंढा,सूरत किसी और की थी,उन आँखों से उतर आना लाज़मी लगा।


अब तो डर भी नहीं लगता,तुम्हें खोने की सोच से,

तुम्हें तुमको सौंपकर, खुद को मना लेना लाज़मी लगा।


कैसे बयाँ करता अपने मोहब्बत का एहसास,

ये पाक मोहब्बत रुसवा ना हो कहीं ,अपने इश्क़ को खुद में छुपा जाना लाज़मी लगा।


मैं "रौशन" फरियाद करता भी तो भला किससे,

जिसका ख़ुदा रूठा हो,तुम्हें भूल आना लाज़मी लगा।।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

Tumhare armano ki wadiyon mein tumhe chhor aana lajmi laga, 

jo bandhan kabhi the hi nhi, unhe tod aana lazmi laga. 


Meri khwahish tere nayno mein , hume dekhne ki thi, 

jab dhunda, surat kisi aur ki thi, un ankho se utar aana lazmi laga.    


Ab to dar bhi nhi lagta,  tumhe khone ki soch se, tumhe tumko saunpkar , khud ko mana lena lazmi laga.      


Kaise baya karte apne mohabbat ka ehsas , 

ye pak mohabbat ruswa na ho kahi, apne ishq ko khud mein chupa jana lazmi laga.     


Main "Raushan" fariyaad karta bhi to bhala kisse, 

jiska khuda rutha ho , tumhe bhul aana lazmi laga..




Thursday, October 22, 2020

आदत न थी

 यूँ तो तुम्हें इंतकाम की आदत न थी,

यूँ तो तुम्हें  इनकार की आदत न थी।


तुम तो लोगों के हृदय में खुदा ढूँढते थे,

यूँ तो तुम्हें बुतपरस्ती की आदत न थी।


मैंने तो तुम्हें खुद पर एतवार करते देखा था,

यूँ तो तुम्हें इज़्तिरार की आदत न थी।


अज़ल से तुम्हारें इमान को पाक देखा हमने,

यूँ तो तुम्हें इम्तियाज़ की आदत न थी।


तुमने सागर के हृदय में लहरों से दोस्ती की थी,

यूँ तो तुम्हें हाशिये की आदत न थी।


तुम तो ख़ालिस हुआ करते थे कभी,

यूँ तो तुम्हें कपट के चोंगें की आदत न थी।


तुम्हारा तो कल हमेशा "रौशन" हुआ करता था,

यूँ तो तुम्हें तारीकियों की आदत न थी।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

इंतकाम-बदला/revenge; बुतपरस्ती-मूर्ति की पूजा;एतवार-भरोसा/faith;ईमान-श्रद्धा/belief; इज़्तिरार-विवशता/helplessness; अज़ल-शुरुआत/beginning; पाक-शुद्ध/pure; इम्तियाज़-अंतर करना/dicriminance;हाशिया-किनारा;खालिस-निष्कपट/pure;तारीकी-अंधेरा/darkness

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★



Saturday, October 17, 2020

मुस्कान लिख दूँ

 तेरे लरज़ते होंठों की मुस्कान लिख दूँ,

तुझपे फक़त कुछ शब्द क्या,मैं पूरी कलाम लिख दूँ।


गर तुम साथ चलने का पैमान कर सको,

मैं फ़लक पर अपनी मोहब्बत का पैगाम लिख दूँ।


तुमसे हार जाना भी मेरी बंदगी होगी,

तुम्हें पाकर मैं,नुसरत के निशां  लिख दूँ।


तुम्हारे चेहरे के नूर से चाँद भी शरमा जाए,

तुम्हें आँगन में बिठाकर,सितारों की शाम लिख दूँ।


जो हवा तेरी छुअन साथ लायी हो,

उस क़ासिद को खुद का सलाम लिख दूँ।


बड़ा फ़क्र है मुझे,मेरी मोहब्बत पर,

खुद को तुझमें शामिल कर,हमारे वज़ूद की पहचान लिख दूँ।


तेरी कुर्बत से हो जाउँ मैं "रौशन"

तुमको अस्हाब बना,तुझमें खुद का जहान लिख दूँ।।

★★★★★★★★★★☆★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

फक़त-सिर्फ/only;पैमान-वायदा/promise; पैगाम-संदेश/message; नुसरत-जीत/victory; नूर-प्रकाश/light; क़ासिद-संदेश वाहक/messenger; कुर्बत-नज़दीकी/closeness; अस्हाब-मालिक/lord

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Tere larajte hotho ki muskan likh du,

Tujhpe fakat kuch shabd kya, main puri kalam likh du।


Agar tum sath chalne ka paiman kar sako,

Main falak par apni mohabbat ka paigam likh du.


Tumse haar jana bhi meri bandagi hogi,

Tumhe paakar main, nusrat ke nishan likh du.


Tumhare chehre ke nur se chand bhi sharma jaye,

Tumhe angan mein bithakar, shitaro ki sham likh du.


Jo hawa teri chhuan saath layi ho, 

Us kaasid ko khud ka salam likh du.


Bada fakr hain mujhe, meri mohabbat par,

Khud ko tujhme shamil kar humare wajud ki pehchan likh du.


Teri qurbat se ho jaun main "raushan"

Tumko ashaab bana, tujhme khud ka jahan likh du.



Thursday, October 15, 2020

शिकायत कैसी

 जो सुनना ही नहीं चाहते,उनसे शिकायत कैसी,

जिनके रास्ते ही जुदा हो,उनसे शिकायत कैसी।


हम तो उन्हें खुद से ज्यादा तरज़ीह दिया करते थे,

ये जंग तो उनकी थी,मेरी खुद से बगावत कैसी।


कहने को तो हमनवां थे हम उनके,

दिल तोड़कर,प्यार जताने की ये चाहत कैसी।


माँगते तो हम अपनी जां भी दे देते उनको,

फ़ासले माँगकर,दिये गए वक़्त की मोहलत कैसी।


ताज़्जुब होता था उनके दोहरे रंग पर हमें,

चुप कराकर,रुलाने की ये नजाकत कैसी।


अब हर रोज मेरे अश्क, मेरी पलकें भिगोया करते है,

दर्द के समंदर में,ये आंखों की शरारत कैसी।


जहाँ "रौशन" सवेरा मुकम्मल ही नहीं,

वहाँ दीपक जलाने की इजाज़त कैसी।।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

शब्द संकलन:-

तरज़ीह-महत्व/importance; बग़ावत-विद्रोह/revolt; हमनवां-दोस्त/friend, फासला-दूरी/distance; मोहलत-वृद्धि/prolongation; ताज़्जुब-आश्चर्य/surprize; नज़ाकत-finicality; अश्क़-आँसू/tear

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Jo sun na hi nhi chahte,unse sikayat kaisi,

Jinke raste hi zuda ho,unse sikayat kaisi.


Hm to unhe khud se jyada tarzih diya karte the,

Ye jung to unki thi,meri khud se bagawat kaisi.


Kehne ko toh humnava the hm unke,

Dil todkar, pyar jatane ki ye chahat kaisi.


Maangte toh hum apni jaan bhi de dete unko,

Fasle maang kar,diye gye waqt ki mohlat kaisi.


Tajjubb hota tha unke dohre rang par humein,

Chup karakar,rulane ki ye nazakat kaisi.


Ab har roj mere ashq,meri palkein bhigoya karte hai,

Dard ke samandar mein,ye aankhon ki shararat kaisi.


Jahan "raushan"savera mukammal hi nahi,

Wahan deepak jalane ki izazat kaisi.




Tuesday, October 13, 2020

तलाश

 ताउम्र तलाश रही,हम-नफ़स को पाने की,

यादों को समेटकर,एक कारवाँ बनाने की।


वो आयें, ठहरें और चले गए,

शायद जरूरत नहीं थी,उन्हें किसी बहाने की।


दर्द की लौ मुस्लसल बढ़ती ही जा रही थी,

मेरे आब-ए-चश्म की नाकाम कोशिश रही उसे बुझाने की।


तर्के-उल्फ़त के अंजुमन में,मैं अकेला कहाँ था,

असरार खुल गई थी,रिवायत-ए-ज़माने की।


अतीत तारीकियों में गुम सी हो गयी लगती हैं,

शायद 'रौशन' भविष्य हो,कोशिशें कुछ चरागाँ जलाने की।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

हमनफ़स-प्रियतम/friend;मुस्लसल-लगातार;

आब-ए-चश्म-आँसू/tear;तर्के-उल्फ़त-बिछड़ना/break up;अंजुमन-सभा; असरार-राज/secret;रिवायत-प्रथा/custom;तारीकी-अंधेरा/darkness;चरागाँ-दीपक/lamp

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Ta-umra talaash rahi,hum-nafas ko pane ki,

Yadon ko sametkar,ek karwan banane ki.


Woh aayein,thehre aur chale gye,

Shayad jaroorat nahi thi,unhe kisi bahane ki.


Dard ki lau,musalsal badhti hi jaa rahi thi,

Mere aab-e-chasm ki naakam koshish rahi use bujhane ki.


Tarke-ulfat ke anjuman mein,main akela kahan tha,

Asrar khul gayi thi,rivayat-e-zamane ki.


Ateet tarikiyon mein gum si ho gayi lgti hai,

Shayad 'raushan' bhavisya ho,koshishe kuchh charagan jalane ki.




Sunday, October 11, 2020

उम्दा तेरी छाया

 खुदी को भूल बैठा हूँ,जब से तुझे पाया,

अब ना धूप लगती हैं, बड़ी उम्दा तेरी छाया।


मुकम्मल तू करा देगा,मेरी राह-ए-मंज़िल को,

बड़ी करिश्माई सी हैं, ईश्वर तेरी माया।


खोल ज्ञान चक्षु तू मेरे,मुझे कोई रास्ता दिखा,

कृपा इतनी सी कर दे,पलट दे मेरी काया।


सुना था कण-कण में,झलक तेरी ही मिलती हैं, 

क्यूँ मन के मंदिर में,तुझे खोज ना पाया।


मैं पापी,पतित,अपराधी हूँ तेरा,

मुझे अब माफ भी कर दे,हूँ दर पर  तेरे आया।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Khudi ko bhul baitha hu ,jab se tujhe paaya,

Ab na dhoop lgti hai,badi umda teri chhaya.


Mukammal tu kara dega,meri raah-e-manzil ko,

Badi karasmaai si hai,ishwar teri maaya.


Khol gyan chakshu tu mere,mujhe koi raasta dikha,

Kripa itni si kar de,palat de meri kaaya.


Suna tha kan-kan mein jhalak teri hi milti hai,

Kyun man ke mandir mein ,tujhe khoj naa paaya.


Main papi,patit, apraadhi hu tera,

Mujhe ab maaf v kar de,hun dar par tere aaya.




Tuesday, October 6, 2020

नेमत

 मैंने अम्मा के रूप में, ममता की नई मूरत देखी हैं,

दुनिया के दोहरे चेहरे में,एक पवित्र सीरत देखी हैं।


कैसे कहूँ,आँखों में आईने नहीं होते?

मैंने उनके चेहरे में,खुद की सूरत देखी हैं।


उनके बिना जिंदगी थम सी जाएगी,

कैसे बताऊँ, मैंने उनके बिन खुद से बगावत देखी हैं।


कैसे जोड़ दूँ, हर रिश्ते को खून के बंधन से?

मैंने उनके हृदय में,निश्चल प्रेम और आस्था देखी हैं।


कैसे कह दूँ, खुदा नहीं इस जहान में?

मैंने ईश्वर की इतनी बेशकीमती नेमत देखी हैं।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Maine amma ke roop mein,mamta ki nayi moorat dekhi hai,

Duniya ke dohre chehre mein,ek pavitra sirat dekhi hai.


Kaise kahu aankhon me aaine nahi hote,

Maine unke chehre mein,khud ki soorat dekhi hai.


Unke bina zindgi tham si jayegi,

Kaise btau,main unke bina,khud se bagawat dekhi hai.


Kaise jod du,har ristey ko khoon ke bandhan se,

Maine unke hriday mein,nischal prem aur aastha dekhi hai.


Kaise keh du khuda nhi iss jahan me,

Maine ishwar ki itni beshkeemti nemat dekhi hai.

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

मूरत-प्रतिमा, सीरत:-स्वभाव;नेमत-वरदान/उपहार

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★




Tuesday, September 29, 2020

गुजारिश हैं

 गुजारिश है तुमसे,मुझे एक आयाम दे दो,

बिखरा सा हूँ मैं,मुझे अपना नाम दे दो;

ख़्वाहिश तो हमेशा उजालों की थी मुझे,

पर अब मुझे बस अपना कीमती शाम दे दो।


थक गया हूँ मैं,फरेबों की गश्ती में,

पैर उठते नहीं अब,आराम दे दो;

तपते आफताब की किरण,अब चुभने लगी हैं,

अपने घनेरी ज़ुल्फ़ों का साया,सरेआम दे दो।


संजीदगी से सजे सपने जाने कहाँ खो से गये हैं,

गुजारिश है,अब उन सपनों को ,खुद की पहचान दे दो;

शायद जिंदगी रुठ सी गई हैं मुझसे,

मेरी ज़िंदगी में आकर,खुशी के फरमान दे दो।


मुस्सलसल खुद की नज़रों में गिरता जा रहा हूँ, 

अपने पलकों पर बिठाकर मुझे,मेरा आसमान दे दो;

तुमसे जुड़ सी गई हैं मेरी मंज़िल की डोर,

इसे स्वार्थ या फ़िर मोहब्बत का नाम दे दो।।

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Guzarish hai tumse,mjhe ek aayam de do,

Bikhra sa hu main,mujhe apna naam de do;

Khwahish toh hmesha ujalo ki thi mujhe,

Par ab mujhe bss apna keemti sham de do.


Thak gya hu main,farebo ki gasti mein,

Pair uthte nhi ab,aaram de do;

Tapte aaftaab ki kiran ab chubhne lgi hai,

Apne ghaneri zulfo ka saya sareaam de do.


Sanjidgi se saje sapne,jane kahan kho se gye hai,

Gujarish h ab un sapno ko,khud ki pehchan de do;

Shayad zindgi rooth si gyi hai mujhse,

Meri zindgi me aakar,khushi ke farmaan de do.


Mussalsal khud ki nazro mein girta jaa rha hu,

Apne palko pr bithakar mujhe,mera aasmaan de do;

Tumse jud si gyi h meri manzil ki dor,

Ise swarth ya phir mohhabat ka naam de do.




सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...