Sunday, February 7, 2021

खुद में कमी ढूँढते हैं

 ताउम्र शिकायत रही औरों से,आज खुद में कमी ढूँढते हैं,

वफ़ा-ओ-ख़ुलूस हो जिसमें,चलो ऐसा हमीं ढूँढते हैं।


नक़्श-ए-पा भी नहीं दिखते,उठते अब्र के दरम्यां,

औरों के आसमां से उतर, खुद की ज़मीं ढूँढते हैं।


शायद कोई तो होगा बा-वफ़ा इस जहां में,

मौसम-ए-ख़ुश्क जहां में,कहीं नमी ढूँढते हैं।


गर लुत्फ़-ए-ख़लिश से रु-ब-रु आता हो कोई,

खता तो यहाँ है,फिर क्यूँ कमी ढूँढते हैं।


भले रातों को "रौशन"करता हो दीया,

मगर सुबह की झलक हम लाज़मी ढूँढते हैं।
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                        शब्द संकलन:-
वफ़ा-ओ-ख़ुलूस-sincerity and affection; हमीं-friend; नक़्श-ए-पा-footprint;अब्र-cloud; बा-वफ़ा-faithful;मौसम-ए-ख़ुश्क-dry weather; लुत्फ़-ए-ख़लिश-pleasure of pain;
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1 comment:

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