Monday, May 24, 2021

खोज लो

छलावे की दुनिया में,एक सच्चा इंसान खोज लो,

इस बिखरी सी बस्ती में,अपना मकान खोज लो।


गर बख़्शा खुदा ने,भरोसे का जेवर,

तो पत्थर में खुद का भगवान खोज लो।


हर रिश्ते का नाम हो,जरूरी नहीं ये,

उसे पलकों पे बिठाकर,खुशियाँ तमाम खोज लो।


उन जज्बातों का क्या,जो भटके हुए है,

गर चाहत नहीं हो तो अपना ईमान खोज लो।



Saturday, May 22, 2021

सजदा इश्क़ का

हलक में जान अटकी तो लबों पर बात आ गई,

मयकदे से अभी निकला और मोहब्बत साथ आ गई ।


ज़रा कोई मौत से कह दो रोके कदम अपनी,

मयस्सर इश्क़ हुआ मेरा,मेरी हयात आ गई।


मुख़्तसर ही सही,ठहरी जो नज़र उनपे,

लगा जैसे मुझे नज़र सूरत-ए-कायनात आ गई।


किसी का चाँद आया था अपनी वफ़ा लेकर,

सजदा इश्क़ का करने,तारों की बारात आ गई।


अंधेरे में जो मैं निकला "रौशन" शमा करने,

अभी तो लौ जलानी थी तभी बरसात आ गई।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

मयकदे-मदिरालय;मयस्सर-प्राप्तयहां होना;हयात-ज़िन्दगी; मुख़्तसर-थोड़ा;शमा-दीया

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★



Monday, May 17, 2021

छोड़ दो

 खुद के अश्क़ों को मुझसे छुपाना छोड़ दो,

रातों की खामोशियों में खुद को जगाना छोड़ दो।


हम पी लिया करेंगें कड़वे साँसों के घुट भी,

तुम अपने जज्बातो को मीठी चासनी में डुबाना छोड़ दो।


बड़ी हिफाज़त से रखेंगे तुम्हें इश्क़ के आँगन में,

यूँ अनजान सी राहों में खुद को भुलाना छोड़ दो।


हर शख्स आश्ना हो ये जरूरी तो नहीं,

यूँ गैरों के ज़ख्मों पर मरहम लगाना छोड़ दो।


तुम्हारी हिफाज़त तो "रौशन"फ़िज़ा भी करेंगे,

फक़त इन अंधेरों से आँखें चुराना छोड़ दो।



Wednesday, May 5, 2021

कोरोना महामारी

 मुक़द्दर रो रहा होगा आज भारत की बेससी पर,

कलयुग मौज में अपने,लोगों के सिसकियों पर,

मर्माहत यहाँ सब है,सब दृष्टिगत तो है,

प्रभु क्या आप है जो बैठे धर्म के अट्टालिका पर?


आब-ओ-हवा विषाक्त है,शायद कुदरत का हुआ अपमान,

फ़िज़ा आज फिर से लेकर आई है मौत का फरमान,

गर कयामत ये नहीं तो और कयामत क्या होगी!

गली नुक्कड़ में लाशें जल रही,भरे पड़े सारे शमशान।


वज्र सा सीना भी झेल ना पा रहा वक़्त की मार,

किसी का टूटा आसमां तो किसी का बिखर गया संसार,

आँखें नम हो रही यहाँ सबकी हर रोज ही,

कैसे इन नयनो से देखें कोई अच्छे दिन का आसार।


लोकतंत्र बस नाम का,बिकी हुई सरकार है,

मदद करने की ओट में,चल रहा ऑक्सीजन का व्यापार है,

अपने मूल्यों,आदर्शों को रौंदने वालो,

ठहरों!तुमसे ही माँ भारती हो रही शर्मसार है।














सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...