Wednesday, August 24, 2022

चिंगारी

 वक़्त ठहरा रहा शब भर,फिर ये शाम कैसे हो? 

किसी का दिल मचलता हो,तुम्हें आराम कैसे हो? 


ताज़्जुब नहीं मुझको,तेरा मौके पर बदल जाना, 

जहाँ चिंगारी भड़कती हो,वहाँ एहतराम कैसे हो? 


नसीहतें ज़माने की अबके जिगर के पार होती है

जिसका ठौर उससे छीन गया,फिर क़याम कैसे हो? 


गर ख़लिश कहीं होती, तो आँखों में उतर आती, 

तेरा सर्द लहजा हो तो होठों पर पयाम कैसे हो? 


गर्द-ए-राह की मौज़ में,संभलते भी भला कैसे, 

जहाँ तहरीर बदलती हो,वहाँ फिर नाम कैसे हो? 


तेरी इन शोख़ बातों ने, मुझे पत्थर का बना डाला, 

किसी की जालसाज़ी में, रौशन मक़ाम कैसे हो? 















Saturday, August 20, 2022

माहताब हो तुम

 मेरी मोहब्बत की एक मुकम्मल किताब हो तुम, 

मेरे बेतरतीब ज़िंदगी की सुलझी हिसाब हो तुम;


हम पूछते रहे ज़माने से,क्या है इश्क़ की परिभाषा, 

मेरे इन सवालातों का एक खूबसूरत जबाब हो तुम;


तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने मुझे यूँ कर दिया बिस्मिल, 

किसी जन्नत की हूर हो या फिर माहताब हो तुम;


अब शिकायत कहाँ रही,बहारों के बे-रूखी से, 

मैं रक़्स करूँ जिसपर,वो हसीन गुलाब हो तुम;


एक उम्र की नींद अता फरमा,गर हक़ीक़त तू नही, 

फिर इस नींद से जागूं ना,गर निहायत ख़्वाब हो तुम;




Monday, August 15, 2022

तेरी कुर्बत

 मेरे पेशानी पर तेरा आज नाम देखा है, 

छुपे इश्क़ को बस्ती में सरेआम देखा है। 


ना काबिल रहा अरसे तलक जमाने में

पलकों तले आज,अपना क़याम देखा है। 


मुद्दतों बाद कहीं ठहरी रही मेरी साँसें

तेरी क़ुर्बत में,आज वो आराम देखा है। 


अब डर नहीं लगता,किसी आज़माइश से

कई दफ़ा मैंने,मेरा यूँ कत्लेआम देखा है। 


रौशन सी इन राहों में कभी सब्र भी करना, 

सुबह के फ़साने में,कहीं एक शाम देखा है। 






सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...