Friday, December 30, 2022

बिखरे हैं

कहीं छूटा वफ़ा मेरा,कहीं जज़्बात बिखरे हैं,
कहीं इश्क़ पर चर्चे हो,कहीं मेरे बात बिखरे हैं।

कुछ कश्तियों के मुकद्दर में साहिल कहाँ होती,
कहीं समंदर की बेचैनी,कहीं मुलाकात बिखरे हैं।

मैंने कई नींद जागी है वफ़ा कर चांदनी के संग,
कहीं ख़्वाब सोया रह गया,कहीं रात बिखरे हैं।

वादों की स्याही से खुद की एक उम्र लिख देना,
कहीं बे-ज़ार होता दिल,कहीं एतमात बिखरे हैं।

अहद ए रफ्ता 'रौशन' महज़ एक हिकायत रह गई,
कहीं कत्ल उल्फत का,कहीं इल्तिफात बिखरे हैं।








Saturday, December 24, 2022

सफर ना पूछ

तू साहिल का पता ले ले,मौजों का सफर ना पूछ,

यूं देकर हवाला सुबह का,रातों का सफर ना पूछ।


भले तू पूछ ले मुझसे सबब मेरे इन सर्द लहजे का,

मोहब्बत का पता ले ले,मोहब्बत का असर ना पूछ।


जो पलकों पर सजाया था,वो सारे ख़्वाब तू ले जा,

जो यादों में उतरती हो, वो बहकी सी नज़र ना पूछ। 


चैन-ओ-सुकूं का हर कतरा,लूटा आया मैं सब उसपर

अज़िय्यत रास अब मुझको,राहत की ख़बर ना पूछ।


अगर तू जानना चाहे मेरे माज़ी की हकीकत को,

इन आँखों में उतर जा तू,किसका है ये घर ना पूछ।


चराग़ाॅं जलाना छोड़ दे,'रौशन' यहाँ कुछ भी नहीं,

फ़क़त यहाँ रात हुई अपनी,हुई कैसे सहर ना पूछ।



Monday, December 19, 2022

तुम भूले हम याद करें

 मौन पड़े कुछ वायदे है,तुम भूले हम याद करें,

वक्त ने तेवर बदले हैं,हम सोचे,हम याद करें।


तेरी हर बात झूठी थी,तेरे जज़्बात थे नकली,

कुछ मौसमी ये रिश्ता था,कुछ बातें हम याद करें।


जरूरत मुकम्मल होते ही,हजारों ऐब अब मुझमें 

पहले आँख पर पट्टी थी,तुम सोचो हम याद करें।


फासले बढ़ाने को गर बस बहाने की जरूरत थी,

तुम पहले ही कह देते,बाकी क्या अब याद करें।


मैं शर्मिंदा हूं खुदपर कि मेरे कोहिनूर के दामन में,

जगह पत्थर की तो न थी,मैं क्या था क्या याद करें।


अंधेरे की आगोश में,ये 'रौशन' चिराग बुझ गया,

कोई चाहत नहीं बाकी,तुमको भूलें,ना याद करें।



Thursday, December 1, 2022

शजर लगता है

मेरा बिखरा हुआ सा इश्क़, एक पुख़्ता बहर लगता है,

मेरे उजड़े से गुलशन में भी फूलों का शजर लगता है।


 यकीनन ख़ाक हो जाओगे, मेरी पनाह के ख़्वाहिश में

 मुझे मेरा ठिकाना भटकता हुआ दर-बदर लगता है।


 क्यूँ भला मैं दर्द में हूँ और इन आँखों में नमी कैसी ?

 हो ना हो ये किसी के यादों का तल्ख़ असर लगता है।


 इन आँसुओं के सैलाब से कहीं समन्दर ना बन जाऊँ, 

इल्तिजा है रोक लो अब इन आईनों से डर लगता है।


 आफताब की किरणें भी, ठहर सी जाती है कहीं दूर,

 मुझे बस मेरे ख़्वाबों में, "रौशन" मेरा सहर लगता है।



सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...