Thursday, January 12, 2023

सोहबत


ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो,
अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो

मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है,
आखों से पिला दो तुम,शोख़ नजरों का पैमाना दो।

मुझे बेशक मिटा दो तुम,अपनी राहों की हकीक़त से,
जो यादों से सजाया था,मुझे गुज़रा वो ज़माना दो।

कभी तो रूठ जाया कर,मेरे इन तल्ख़ लहज़े पर,
मुझे तुमको मनाने का,झूठा ही सही, बहाना दो।

मेरी शामें गुजरती है,तेरी सोहबत की ख़्वाहिश में,
वो 'रौशन' सवेरा दो,इन पलकों का आशियाना दो।







Friday, December 30, 2022

बिखरे हैं

कहीं छूटा वफ़ा मेरा,कहीं जज़्बात बिखरे हैं,
कहीं इश्क़ पर चर्चे हो,कहीं मेरे बात बिखरे हैं।

कुछ कश्तियों के मुकद्दर में साहिल कहाँ होती,
कहीं समंदर की बेचैनी,कहीं मुलाकात बिखरे हैं।

मैंने कई नींद जागी है वफ़ा कर चांदनी के संग,
कहीं ख़्वाब सोया रह गया,कहीं रात बिखरे हैं।

वादों की स्याही से खुद की एक उम्र लिख देना,
कहीं बे-ज़ार होता दिल,कहीं एतमात बिखरे हैं।

अहद ए रफ्ता 'रौशन' महज़ एक हिकायत रह गई,
कहीं कत्ल उल्फत का,कहीं इल्तिफात बिखरे हैं।








Saturday, December 24, 2022

सफर ना पूछ

तू साहिल का पता ले ले,मौजों का सफर ना पूछ,

यूं देकर हवाला सुबह का,रातों का सफर ना पूछ।


भले तू पूछ ले मुझसे सबब मेरे इन सर्द लहजे का,

मोहब्बत का पता ले ले,मोहब्बत का असर ना पूछ।


जो पलकों पर सजाया था,वो सारे ख़्वाब तू ले जा,

जो यादों में उतरती हो, वो बहकी सी नज़र ना पूछ। 


चैन-ओ-सुकूं का हर कतरा,लूटा आया मैं सब उसपर

अज़िय्यत रास अब मुझको,राहत की ख़बर ना पूछ।


अगर तू जानना चाहे मेरे माज़ी की हकीकत को,

इन आँखों में उतर जा तू,किसका है ये घर ना पूछ।


चराग़ाॅं जलाना छोड़ दे,'रौशन' यहाँ कुछ भी नहीं,

फ़क़त यहाँ रात हुई अपनी,हुई कैसे सहर ना पूछ।



Monday, December 19, 2022

तुम भूले हम याद करें

 मौन पड़े कुछ वायदे है,तुम भूले हम याद करें,

वक्त ने तेवर बदले हैं,हम सोचे,हम याद करें।


तेरी हर बात झूठी थी,तेरे जज़्बात थे नकली,

कुछ मौसमी ये रिश्ता था,कुछ बातें हम याद करें।


जरूरत मुकम्मल होते ही,हजारों ऐब अब मुझमें 

पहले आँख पर पट्टी थी,तुम सोचो हम याद करें।


फासले बढ़ाने को गर बस बहाने की जरूरत थी,

तुम पहले ही कह देते,बाकी क्या अब याद करें।


मैं शर्मिंदा हूं खुदपर कि मेरे कोहिनूर के दामन में,

जगह पत्थर की तो न थी,मैं क्या था क्या याद करें।


अंधेरे की आगोश में,ये 'रौशन' चिराग बुझ गया,

कोई चाहत नहीं बाकी,तुमको भूलें,ना याद करें।



Thursday, December 1, 2022

शजर लगता है

मेरा बिखरा हुआ सा इश्क़, एक पुख़्ता बहर लगता है,

मेरे उजड़े से गुलशन में भी फूलों का शजर लगता है।


 यकीनन ख़ाक हो जाओगे, मेरी पनाह के ख़्वाहिश में

 मुझे मेरा ठिकाना भटकता हुआ दर-बदर लगता है।


 क्यूँ भला मैं दर्द में हूँ और इन आँखों में नमी कैसी ?

 हो ना हो ये किसी के यादों का तल्ख़ असर लगता है।


 इन आँसुओं के सैलाब से कहीं समन्दर ना बन जाऊँ, 

इल्तिजा है रोक लो अब इन आईनों से डर लगता है।


 आफताब की किरणें भी, ठहर सी जाती है कहीं दूर,

 मुझे बस मेरे ख़्वाबों में, "रौशन" मेरा सहर लगता है।



Friday, November 25, 2022

मैं और तुम


 मैं दावानल सा धधकता हूं,तुम सावन की फुहार हो जाती,

मैं मकरंद, कली पर सिंचित और तुम रेशम की हार हो जाती।


परा प्रकृति की गोद में जब भी अतिक्रमण विस्तारित होता ,

मैं अकाट्य तिलिस्म हो जाता,तुम वीणा की तार हो जाती।


सहस्र द्वंदो से घिरा जब साहित्यिक चेतना हो सुप्त किंचित,

मैं बिहारी की कविता हो जाता,तुम नैसर्गिक श्रृऺगार हो जाती।


 चंचलता के अभिभूत चित जब विरक्ति का मार्ग प्रशस्त करे,

मैं बहिर्मुखी अंतस का साधक,तुम विशिष्ट प्रत्याहार हो जाती।


बलि के बेदी पर शीश झुकाए जब धर्म हो निःशब्द खड़ा,

मैं गीता का ज्ञान हो जाता और तुम अभेद्य हुंकार हो जाती।


जब मानवता का लोप हो,मर्यादा अपनी लाज बचाती हो,

मैं काल भैरव का रौद्र रूप,तुम पिनाक की टंकार हो जाती।







Wednesday, August 24, 2022

चिंगारी

 वक़्त ठहरा रहा शब भर,फिर ये शाम कैसे हो? 

किसी का दिल मचलता हो,तुम्हें आराम कैसे हो? 


ताज़्जुब नहीं मुझको,तेरा मौके पर बदल जाना, 

जहाँ चिंगारी भड़कती हो,वहाँ एहतराम कैसे हो? 


नसीहतें ज़माने की अबके जिगर के पार होती है

जिसका ठौर उससे छीन गया,फिर क़याम कैसे हो? 


गर ख़लिश कहीं होती, तो आँखों में उतर आती, 

तेरा सर्द लहजा हो तो होठों पर पयाम कैसे हो? 


गर्द-ए-राह की मौज़ में,संभलते भी भला कैसे, 

जहाँ तहरीर बदलती हो,वहाँ फिर नाम कैसे हो? 


तेरी इन शोख़ बातों ने, मुझे पत्थर का बना डाला, 

किसी की जालसाज़ी में, रौशन मक़ाम कैसे हो? 















Saturday, August 20, 2022

माहताब हो तुम

 मेरी मोहब्बत की एक मुकम्मल किताब हो तुम, 

मेरे बेतरतीब ज़िंदगी की सुलझी हिसाब हो तुम;


हम पूछते रहे ज़माने से,क्या है इश्क़ की परिभाषा, 

मेरे इन सवालातों का एक खूबसूरत जबाब हो तुम;


तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने मुझे यूँ कर दिया बिस्मिल, 

किसी जन्नत की हूर हो या फिर माहताब हो तुम;


अब शिकायत कहाँ रही,बहारों के बे-रूखी से, 

मैं रक़्स करूँ जिसपर,वो हसीन गुलाब हो तुम;


एक उम्र की नींद अता फरमा,गर हक़ीक़त तू नही, 

फिर इस नींद से जागूं ना,गर निहायत ख़्वाब हो तुम;




Monday, August 15, 2022

तेरी कुर्बत

 मेरे पेशानी पर तेरा आज नाम देखा है, 

छुपे इश्क़ को बस्ती में सरेआम देखा है। 


ना काबिल रहा अरसे तलक जमाने में

पलकों तले आज,अपना क़याम देखा है। 


मुद्दतों बाद कहीं ठहरी रही मेरी साँसें

तेरी क़ुर्बत में,आज वो आराम देखा है। 


अब डर नहीं लगता,किसी आज़माइश से

कई दफ़ा मैंने,मेरा यूँ कत्लेआम देखा है। 


रौशन सी इन राहों में कभी सब्र भी करना, 

सुबह के फ़साने में,कहीं एक शाम देखा है। 






Monday, December 27, 2021

इल्ज़ाम न दो

 रंज-ओ-गम से लबरेज़ हूँ,अब और इल्ज़ाम न दो। 

बे-ख़्याली में रहने दो, अब दर्द तमाम न दो। 


इश्क़ के हुक्मरानों से,बस एक गुज़ारिश आखिर में, 

टूट रहा हो जो तारा, उसे उसका आसमान न दो। 


दिल-ओ-दीवार फांदकर,क्यूँ आते हो,मेरे तस्सवुर में,

राहत-ए-सफर में यूँ आकर, अब और विराम न दो। 


तेरी जफ़ाओं के मंज़र,आज दफ़्न पड़े हैं कब्रों में, 

इन बेहिसी के किस्से को, अब नया मक़ाम न दो।


दश्त-ए-तन्हाई में गुजरी हैं,कई वस्ल की रातें, 

'रौशन' सवेरा करने को,अब बेकसी का नाम न दो। 





Sunday, November 7, 2021

पूछते हैं

अक्सर अंधेरी रातों से घर का पता पूछते हैं, 

जो ख़ता की ही नहीं,आज वो ख़ता पूछते हैं। 


जो छोड़ जाते हैं मुझे तन्हाईयों में अक्सर,

गैरों की चौखट पर जा,मेरी वफ़ा पूछते हैं। 


शुक्र है,मैंने तालीम ली है चुप रहने की,

 भावनाओं के रंगमंच पर वो मेरी अदा पूछते है ।


जब जुस्तजूँ ना रही किसी खोखले दिखावे की,

आज वो सारे शहर से,मेरी सदा पूछते हैं।



Monday, May 24, 2021

खोज लो

छलावे की दुनिया में,एक सच्चा इंसान खोज लो,

इस बिखरी सी बस्ती में,अपना मकान खोज लो।


गर बख़्शा खुदा ने,भरोसे का जेवर,

तो पत्थर में खुद का भगवान खोज लो।


हर रिश्ते का नाम हो,जरूरी नहीं ये,

उसे पलकों पे बिठाकर,खुशियाँ तमाम खोज लो।


उन जज्बातों का क्या,जो भटके हुए है,

गर चाहत नहीं हो तो अपना ईमान खोज लो।



Saturday, May 22, 2021

सजदा इश्क़ का

हलक में जान अटकी तो लबों पर बात आ गई,

मयकदे से अभी निकला और मोहब्बत साथ आ गई ।


ज़रा कोई मौत से कह दो रोके कदम अपनी,

मयस्सर इश्क़ हुआ मेरा,मेरी हयात आ गई।


मुख़्तसर ही सही,ठहरी जो नज़र उनपे,

लगा जैसे मुझे नज़र सूरत-ए-कायनात आ गई।


किसी का चाँद आया था अपनी वफ़ा लेकर,

सजदा इश्क़ का करने,तारों की बारात आ गई।


अंधेरे में जो मैं निकला "रौशन" शमा करने,

अभी तो लौ जलानी थी तभी बरसात आ गई।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

मयकदे-मदिरालय;मयस्सर-प्राप्तयहां होना;हयात-ज़िन्दगी; मुख़्तसर-थोड़ा;शमा-दीया

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★



Monday, May 17, 2021

छोड़ दो

 खुद के अश्क़ों को मुझसे छुपाना छोड़ दो,

रातों की खामोशियों में खुद को जगाना छोड़ दो।


हम पी लिया करेंगें कड़वे साँसों के घुट भी,

तुम अपने जज्बातो को मीठी चासनी में डुबाना छोड़ दो।


बड़ी हिफाज़त से रखेंगे तुम्हें इश्क़ के आँगन में,

यूँ अनजान सी राहों में खुद को भुलाना छोड़ दो।


हर शख्स आश्ना हो ये जरूरी तो नहीं,

यूँ गैरों के ज़ख्मों पर मरहम लगाना छोड़ दो।


तुम्हारी हिफाज़त तो "रौशन"फ़िज़ा भी करेंगे,

फक़त इन अंधेरों से आँखें चुराना छोड़ दो।



Wednesday, May 5, 2021

कोरोना महामारी

 मुक़द्दर रो रहा होगा आज भारत की बेससी पर,

कलयुग मौज में अपने,लोगों के सिसकियों पर,

मर्माहत यहाँ सब है,सब दृष्टिगत तो है,

प्रभु क्या आप है जो बैठे धर्म के अट्टालिका पर?


आब-ओ-हवा विषाक्त है,शायद कुदरत का हुआ अपमान,

फ़िज़ा आज फिर से लेकर आई है मौत का फरमान,

गर कयामत ये नहीं तो और कयामत क्या होगी!

गली नुक्कड़ में लाशें जल रही,भरे पड़े सारे शमशान।


वज्र सा सीना भी झेल ना पा रहा वक़्त की मार,

किसी का टूटा आसमां तो किसी का बिखर गया संसार,

आँखें नम हो रही यहाँ सबकी हर रोज ही,

कैसे इन नयनो से देखें कोई अच्छे दिन का आसार।


लोकतंत्र बस नाम का,बिकी हुई सरकार है,

मदद करने की ओट में,चल रहा ऑक्सीजन का व्यापार है,

अपने मूल्यों,आदर्शों को रौंदने वालो,

ठहरों!तुमसे ही माँ भारती हो रही शर्मसार है।














Sunday, February 7, 2021

खुद में कमी ढूँढते हैं

 ताउम्र शिकायत रही औरों से,आज खुद में कमी ढूँढते हैं,

वफ़ा-ओ-ख़ुलूस हो जिसमें,चलो ऐसा हमीं ढूँढते हैं।


नक़्श-ए-पा भी नहीं दिखते,उठते अब्र के दरम्यां,

औरों के आसमां से उतर, खुद की ज़मीं ढूँढते हैं।


शायद कोई तो होगा बा-वफ़ा इस जहां में,

मौसम-ए-ख़ुश्क जहां में,कहीं नमी ढूँढते हैं।


गर लुत्फ़-ए-ख़लिश से रु-ब-रु आता हो कोई,

खता तो यहाँ है,फिर क्यूँ कमी ढूँढते हैं।


भले रातों को "रौशन"करता हो दीया,

मगर सुबह की झलक हम लाज़मी ढूँढते हैं।
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                        शब्द संकलन:-
वफ़ा-ओ-ख़ुलूस-sincerity and affection; हमीं-friend; नक़्श-ए-पा-footprint;अब्र-cloud; बा-वफ़ा-faithful;मौसम-ए-ख़ुश्क-dry weather; लुत्फ़-ए-ख़लिश-pleasure of pain;
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Sunday, January 17, 2021

तू दिल में उतर आया

 कई अरसे बाद मेरी दुआओं में असर आया,

लगा जैसे चाँद मेरे आँगन में उतर आया,


यूँ तो अक्सर ही मेरे ख़्यालों में रहा करते थे तुम,

अब तेरा ख़्याल तेरी तमन्ना में बदल आया,


हद-ए-बेबसी का आलम पूछो ना हमसे,

मैं मेरा न रहा,बस तेरा ही नज़र आया,


तेरी कुर्बत में हो जाऊं मैं "रौशन"

किया जो ज़िक्र तेरा,तू दिल में उतर आया।



Friday, January 15, 2021

गज़ब की वफ़ा दे गया

 कौन है वो जो मेरी आँखों को मोहब्बत का नशा दे गया,

आब-ए-तल्ख़ हाथों में थी,कोई लबों से पिला दे गया;


याद आयी है मुझे कुछ बिसरी सी ग़मगीन सूरतें उनकी,

शुक्रिया उसका जो मेरे जख्मों को फिर हवा दे गया;


बेतहाशा रोना था मझे शायद अपनी ही रंजिश में ,

ग़मों के प्यालें में,इश्क़ की चासनी घोल,कोई हँसा दे गया;


अब तो नज़रें उठती ही नहीं कहीं और तेरे चेहरे के सिवा,

बातों ही बातों में,कोई गज़ब की वफ़ा दे गया।



Monday, December 28, 2020

टूटकर बिखर जाएंगे

उम्मीद थी तेरी उम्मीदों पर खड़ा उतर जाएंगे,

खबर कहाँ थी मुझे,यूँ आँखों से उतर जाएंगे


तेरी उल्फ़त के कायल कुछ इस क़दर रहें हम,

गर बहक भी गए तो भी सँवर जाएंगे;


कभी वक़्त बेरहम रहा,कभी गुनाहगार हम भी हुए,

हार गए जीती हुई बाजी,अब किधर जाएंगे;


अब मेरा हँसना भी गवारा नहीं होता कइयों को,

बैठूँ गर खामोशियों के आँगन में,तो भी अखर जाएंगे;


हिम्मत ही नहीं होती फिर आगाज़ करने की,

गर अब हारें तो बेशक टूटकर बिखर जाएंगे।



Wednesday, December 2, 2020

वहीं अंत पाता हूँ

 इन सर्द रातों में,अपने मंजिल से अनजान चला जाता हूँ,

थक कर चूर हो,कँपकपाता हुआ, कहीं बैठ जाता हूँ,

नज़ारें आस पास का देख एक बारगी फिर ठिठक जाता हूँ, 

जहाँ से शुरुआत हुई थी सफर की,वहीं अंत पाता हूँ।


अब ना वक़्त का पता है,ना मंजिल-ए-खुशी की है खबर,

मुश्किलों की गोद में पलता है,मेरे सपनों का उम्दा शहर,

फिर भला किस सोच में,मैं किधर जाता हूँ?

जहाँ से शुरुआत हुई थी सफर की,वहीं अंत पाता हूँ। 


मेरी हर चेतना को ढ़कता है,मेरे गरीबी का खुला अंबर,

ना खाने को है दो रोटी, ना सोने को मेरा बिस्तर ,

फटे कपड़ो की गठरी से,मैं अपनी लाज बचाता हूँ,

जहाँ से शुरुआत हुई थी सफर की,वहीं अंत पाता हूँ।


यहाँ झूठ लाखों में बिकते है, सच का मूल्य दो कौड़ी,

अमीर तिजोरी भरते है,होती गरीबो से यहाँ चोरी,

नींद की ख्वाहिश में,मैं खुद को, मेरा अतीत सुनाता हूँ,

जहाँ से शुरुआत हुई थी सफर की, वहीं अंत पाता हूँ।


मुझे याद आती है,बचपन की वो धुँधली सूरत, 

बस ठोकरें मिली मुझे, कह नफ़रत का ये मूरत, 

गिरा गया जहां मुझको, मेरी ही नज़रों में, 

इस वेदना से आहत हो,मैं सहम सा जाता हूँ,

जहाँ से शुरुआत हुई थी सफर की,वहीं अंत पाता हूँ।

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In sard raton me,apne manjil se anjan chala jata hu,

Thak kar chur ho,kanpkapata hua, kahin baith jata hu,

Nazaarein aas pas ka dekh ek bargi fir thithak jata hu,

Jahan se shuruaat huyi thi safar ki,wohi antt pata hu.


Ab naa waqt ka pta hai,naa manjil-e-khushi ki hai khabar,

Mushkilon ki god me palta hai, mere sapno ka umda sheher,

Phir bhala kis soch me, main kidhar jata hu ?

Jahan se shuruaat huyi thi safar ki,wohi antt pata hu.


Meri har Chetna ko dhakta hai,mere garibi ka khula ambar,

Naa khane ko roti hai,naa sone ko mera bistar,

Fate kapdo ki gathari se,main apni laaz bachaata hu,

Jahan se shuruaat huyi thi safar ki,wohi antt pata hu.


Yahan jhooth lakhon me bikte hai,sach ka mulya do kauri,

Ameer tizori bharte hai,hoti gareebo se yahan chori,

Neend ki khwahish me main khud ko, mera ateet sunata hu,

Jahan se shuruaat huyi thi safar ki wohi antt pata hu.


Mujhe yaad aati hai bachpan ki woh dhundhali soorat,

Bss thokre mili mujhe,keh nafrat ka ye moorat,

Gira gaya jahan mujhko meri hi nazro me,

Iss vedna se aahat ho,main seham sa jata hu,

Jahan se shuruaat huyi thi safar ki wohi antt pata hu.

Sunday, November 22, 2020

तन्हाई

इन मखमली सी रातों में फिर से कोई याद आया हैं,
बुझे हुए चिंगारी को किसी ने आग  लगाया हैं।

यूँ तो हर रोज़ ही गुफ़्तगू होती है तन्हाई से,
पर आज इन तन्हाइयों ने भी में मेरा मजाक बनाया हैं।

शायद हवाओं ने भी रुख बदल लिया है आज,
सबने ही किसी खालीपन का एहसास दिलाया हैं।

अब तो मैं कहीं खोने से भी नहीं डरता,
मुझे मेरी राहों ने ही भटकना सिखाया हैं।


Tuesday, November 17, 2020

सावन को तरसते देखा है

 हमने बारिश के लिए सावन को तरसते देखा है,

गुमसुदा यादों को यादों में नीरसते देखा है।


कुछ सोच जो  बाँह पसारे मेहमानवाजी किया करते थे, 

उन आरजूओं को दिल के किसी कोने में सिसकते देखा है।



जिनके होंठों पर कभी राज हुआ करता था हंसी का,

उन्हें बेसुध सा पड़ा हुआ कराहते देखा है।


जो हमनवा हुआ करते थे अनेकों दिलों के,

उन्हें अंजान राहों पर अकेले भटकते देखा हैं।


वो आंखें जो इबादत हुआ करती थी किसी की,

उन आंखों में आब-ए-चश्म को उमरते देखा है।


कोई इल्तला करें ख़ुदा को उनकी बेबसी से,

कई सुलझे से पहलुओं को खुद में उलझते देखा है।


जिनका "रौशन" हुआ करता था खुशियों का घरौंदा,

उन्हें दुखों की फर्श पर टूटकर बिखरते देखा है।

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Humne barish ke liye sawan ko taraste dekha hai, 

Gumsuda yaado ko yaado mein niraste dekha hai.    


Kuch soch jo baanh  pasare mehmannawaji kiya karte the, 

Un aarzuon ko dil ke kisi kone mein sisakte dekha hai.   


Jinke hotho par kabhi raaz hua karta tha hansi ka,

Unhe besudh sa pada hua karahte dekha hain.  


Jo humnawa hua karte the aneko dilon  ke, 

unhe anjan raho par akele  bhatakte dekha hain.  


Woh ankhein jo ibadat hua karti thi kisi ki, 

Un ankhon mein aab-e-chasm ko umarte dekha hain.    


Koi iltalla kare khuda ko unki bebasi se, 

Kai suljhe se pehluo ko khud mein ulajhte dekha hain. 


Jinka "Raushan" hua karta tha khushiyon ka gharaunda,

Unhe dukho ki farsh par tutkar bikharte dekha hain..




Tuesday, November 10, 2020

मेरी आँखें भर आई हैं

 फज़ा मे इत्र सा घुल गया है,

या मेरे मन के द्वार मे,

उनकी साँसों की छुअन

कोइ संदेश लाई है ?

क्या उन्होंने जुल्फें लहराई है?


विहंगम का कलरव आज बड़े मोहक जान पड़ते है,

या उन्होंने किसी कासिद को,

अपने मधुर स्वर मे

सरगम सिखाई है?

क्या उनहोने गीत गाई है?


रवि छुप सा गया है बादल के छाव तले,

या उनहोने किसी को

भोलेपन के भाव में,

अपने अंतर्मन पर अंकित ,

अमिट छाप दिखायी है ?

क्या उनहोने अपनी पलकें झुकायी है?


अब ना ही हो बारिश तो अच्छा होगा,

या यूं कहूँ की मैंने ही,

अपने शब्दों की तरकश से ,

दुखदायिनि तीर चलाई है।

हाँ ! मेरी आँखे भर आई है ।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Faza me itra sa ghul gya hai,

Ya mere man ke dwar me,

Unki saanson ki chhuan ,


Koi sandesh layi hai?

Kya unhone zulfein lehrai hai?


Vihangam ka kalrav aaj bade mohak jaan padte hai,

Ya unhone kisi qasid ko,

Apne madhur swaro me 

Sargam sikhayi hai?

Kya unhone geet gayi hai?


Ravi chhup sa gya hai baadal ke chhav tale

Ya unhone kisi ko,

 bholepan ke bhav me,

Apne antarman par ankit,

Amit chhap dikhayi hai?

Kya unhone apni palkein jhukayi hai?


Ab naa hi ho baarish toh achha hoga,

Ya yun khu ki maine hi,

Apne shabdo ki tarkash se,

Dukhdayini teer chalayi hai.

Haan! Meri aankhein bhar aayi hai.




Saturday, November 7, 2020

मयकशी से निकलो

 ये कैसी दशा है,ये कैसा संयोग,

दवा भी वही हैं, वही है वो रोग;

आधुनिकता की आड़ में,सब समाहित है जिसमें,

खुशियाँ उसी में,समझे उसको ही भोग।


दुख की घड़ी में,वो साथी सभी का,

खुशी के क्षणों में,वो पल दें हँसी का;

गर देखना हो उसकी इबादत का जौहर,

मयकदे में जाओ,देखो आलम बेबसी का।


मयकशी से निकलो,देखो हज़ारो-सैकड़ो को,

उजड़ते माँगों को देखो,देखो बिखरते घरों को;

बहार-ए-चमन इसको समझो ना तुम,

इसके आँचल से निकलो,देखो निकलते अवसरों को।


वास्तविक चेहरे में आओ,खुद से खुद की पहचान करो,

मदिरा त्यागने का लो प्रण और खुद का उत्थान करो;

नवीन सवेरा तुम्हारा बाट हैं जोहती,

उठाओ कदम सन्मार्ग पर और खुद का सम्मान करो।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Ye kaisi dasha hai ye kaisa sanjog

Dava v wohi hai,wohi hai woh rog

Aadhunikata ki aad me,sb samahit hai jisme,

Khushiyan usi me,smjhe usko hi bhog.


Dukh ki ghari me,woh sathi sabhi ka,

Khushi ke chhano me,woh pal de hasi ka,

Gar dekhna ho uski ibadat ka jauhar,

Maikade me jao,dekho aalam bebasi ka.


Maikasi se niklo,dekho hazaro saikaro ko,

Uzarte maango ko dekho,dekho bikharte gharo ko,

Bahar-e-chaman, isko smjho naa tm,

Iske aanchal se niklo,dekho nikalte avsaro ko.


Vastavik chehre me aao,khud se khud ki pehchan karo

Madira tyagne ka lo pran,aur khud ka utthan karo,

Navin savera tmhara baat hai johti,

Uthao kadam sanmarg par aur khud ka samman karo.




Sunday, November 1, 2020

मेरे पहलू में बैठों

 क़यामत ढ़ा जाती है,तेरी नज़रों का मिलाना,

पलकों को गिराकर,यूँ पलकों का उठाना।


हाथों में सुमन हैं, रखते दिल में हैं खंज़र,

घायल ना कर जाए,ये कातिल ज़माना।


रवायत-ए-ज़माने में,मैं भी हूँ शामिल,

फँसा गया है मुझको,मेरा ही फ़साना।


वो अफ़साने,जो संभाले ना संभलें,

मेरे पहलू में बैठों और आँखों से सुनाना।


तेरी धड़कनों पर दस्तक़ हो मेरी,

बहुत याद आये, मुझे तेरा हँसाना।


गर रूठे कभी हम, एक-दूसरे से,

मैं तुमको मनाऊँ और तुम मुझको मनाना।


होती है शामें,"रौशन" तुम्हीं से,

बुझा दूँ दीया,कर रातों का बहाना।।

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Kayamat dha jati hai, teri nazron ka milana, 

palko ko girakar, yun palkon ka uthana।


Hatho mein suman hain, rakhte dil mein hain khanjar,

ghayal na kar jay,  ye katil jamana।


Rawayat-e-jamane mein, main bhi hun shamil,

fasa gaya hain mujhko, mera hi fasana। 


Wo afsane, jo sambhale na sambhle ,

mere pehlu mein baitho aur ankho se sunana ।


Teri dhadkano par dastak ho meri, 

bahut yaad aaye, mujhe tera hasana । 


Agar ruthe kabhi hum , ek dusre se, 

main tumko manaun aur tum mujhko manana।


Hoti hain shamein, "Raushan" tumhi se, 

bujha dun diya, kar rato ka bahana।।



Wednesday, October 28, 2020

बेरुखी अच्छी

 इश्क़ के छलावे से आपकी बेरुखी अच्छी, 

जहाँ जज्बात शून्य हो,वहाँ आपकी कमी अच्छी।


जहाँ बात होती हो फक़त इश्क़-ए-मजाज़ी की,

खुद को चूमकर,खुदी से दिल्लगी अच्छी।


ढूँढ लें उसे जिसमे छवि कायनात की दिखती हो,

जिसे इंतज़ार हो आपका,वो इश्क़-ए-हक़ीकी अच्छी।


गर इंतज़ार लंबा हो,आप सब्र कर लेना,

आरज़ू-ए-मोहब्बत में ये तिश्नगी अच्छी।


हमेशा चाँद सा "रौशन" रहे, आपका नूरानी चेहरा,

आपके हिलते लबो पर ये हँसी अच्छी।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

फक़त-सिर्फ/only; इश्क़-ए-मजाज़ी-शारीरिक प्यार/physical love;इश्क़-ए-हक़ीकी-divine love; तिश्नगी-प्यास/thirst

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Ishq ke chhlave se aapki berukhi achhi,

Jahan zazbat sunya ho,wahan aapki kami achhi.


Jahan baat hoti ho,fakat ishq-e-mazazi ki,

Khud ko chumkr,khudi se dillagi achhi.


Dhundh lein usse,jisme chhavi kaynat ki dikhti ho,

Jise intzar ho aapka,woh ishq-e-hakiki achhi.


Gar intzar lamba ho aap sbra kar lena,

Aarzu-e-mohabbat mein,ye tishnagi achhi.


Hmesha chand sa "raushan" rhe aapka noorani chehra,

Aapke hilte labon pr ye hasi achhi





Saturday, October 24, 2020

लाज़मी लगा

 तुम्हारें अरमानों की वादियों में तुम्हें छोड़ आना लाज़मी लगा,

जो बंधन कभी थे ही नहीं, उन्हें तोड़ आना लाज़मी लगा ।


मेरी ख़्वाहिश तेरे नयनों में,हमें देखने की थी,

जब ढूंढा,सूरत किसी और की थी,उन आँखों से उतर आना लाज़मी लगा।


अब तो डर भी नहीं लगता,तुम्हें खोने की सोच से,

तुम्हें तुमको सौंपकर, खुद को मना लेना लाज़मी लगा।


कैसे बयाँ करता अपने मोहब्बत का एहसास,

ये पाक मोहब्बत रुसवा ना हो कहीं ,अपने इश्क़ को खुद में छुपा जाना लाज़मी लगा।


मैं "रौशन" फरियाद करता भी तो भला किससे,

जिसका ख़ुदा रूठा हो,तुम्हें भूल आना लाज़मी लगा।।

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Tumhare armano ki wadiyon mein tumhe chhor aana lajmi laga, 

jo bandhan kabhi the hi nhi, unhe tod aana lazmi laga. 


Meri khwahish tere nayno mein , hume dekhne ki thi, 

jab dhunda, surat kisi aur ki thi, un ankho se utar aana lazmi laga.    


Ab to dar bhi nhi lagta,  tumhe khone ki soch se, tumhe tumko saunpkar , khud ko mana lena lazmi laga.      


Kaise baya karte apne mohabbat ka ehsas , 

ye pak mohabbat ruswa na ho kahi, apne ishq ko khud mein chupa jana lazmi laga.     


Main "Raushan" fariyaad karta bhi to bhala kisse, 

jiska khuda rutha ho , tumhe bhul aana lazmi laga..




Thursday, October 22, 2020

आदत न थी

 यूँ तो तुम्हें इंतकाम की आदत न थी,

यूँ तो तुम्हें  इनकार की आदत न थी।


तुम तो लोगों के हृदय में खुदा ढूँढते थे,

यूँ तो तुम्हें बुतपरस्ती की आदत न थी।


मैंने तो तुम्हें खुद पर एतवार करते देखा था,

यूँ तो तुम्हें इज़्तिरार की आदत न थी।


अज़ल से तुम्हारें इमान को पाक देखा हमने,

यूँ तो तुम्हें इम्तियाज़ की आदत न थी।


तुमने सागर के हृदय में लहरों से दोस्ती की थी,

यूँ तो तुम्हें हाशिये की आदत न थी।


तुम तो ख़ालिस हुआ करते थे कभी,

यूँ तो तुम्हें कपट के चोंगें की आदत न थी।


तुम्हारा तो कल हमेशा "रौशन" हुआ करता था,

यूँ तो तुम्हें तारीकियों की आदत न थी।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

इंतकाम-बदला/revenge; बुतपरस्ती-मूर्ति की पूजा;एतवार-भरोसा/faith;ईमान-श्रद्धा/belief; इज़्तिरार-विवशता/helplessness; अज़ल-शुरुआत/beginning; पाक-शुद्ध/pure; इम्तियाज़-अंतर करना/dicriminance;हाशिया-किनारा;खालिस-निष्कपट/pure;तारीकी-अंधेरा/darkness

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★



Tuesday, October 20, 2020

खुशी कहाँ आती

 जब स्वर्णिम स्वप्न टूट जाते हैं,

खुद के हाथ खुदी से छूट जाते हैं,

कहने को तो जी रहे होते हैं,

रहती लबों पर हँसी और खुदी से रूठ जाते हैं।


जो जमींदार है गमों के,खुशी कहाँ आती,

फक़त समझौता दर्द से करने से,हँसी कहाँ आती,

आज उन आँखों को इंतज़ार रहा आँसुओं का,

वो भी बेवफा निकली सहर,अश्रु कहाँ आती।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Jab swarnim swapn tut jate hai,

Khud ke hath khudi se chhut jate hai,

Kehne ko toh jee rhe hote hai,

Rehti labo pr hasi aur khudi se rooth jate h.


Jo zamindar hai gamo ke,khushi kahan aati,

Fakat samjhota dard se karne se,hasi kahan aati,

Aaj un aankhon ko intzar rha aansuon ka,

Woh v bewafa nikli sheher,ashru kahan aati




Saturday, October 17, 2020

मुस्कान लिख दूँ

 तेरे लरज़ते होंठों की मुस्कान लिख दूँ,

तुझपे फक़त कुछ शब्द क्या,मैं पूरी कलाम लिख दूँ।


गर तुम साथ चलने का पैमान कर सको,

मैं फ़लक पर अपनी मोहब्बत का पैगाम लिख दूँ।


तुमसे हार जाना भी मेरी बंदगी होगी,

तुम्हें पाकर मैं,नुसरत के निशां  लिख दूँ।


तुम्हारे चेहरे के नूर से चाँद भी शरमा जाए,

तुम्हें आँगन में बिठाकर,सितारों की शाम लिख दूँ।


जो हवा तेरी छुअन साथ लायी हो,

उस क़ासिद को खुद का सलाम लिख दूँ।


बड़ा फ़क्र है मुझे,मेरी मोहब्बत पर,

खुद को तुझमें शामिल कर,हमारे वज़ूद की पहचान लिख दूँ।


तेरी कुर्बत से हो जाउँ मैं "रौशन"

तुमको अस्हाब बना,तुझमें खुद का जहान लिख दूँ।।

★★★★★★★★★★☆★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

फक़त-सिर्फ/only;पैमान-वायदा/promise; पैगाम-संदेश/message; नुसरत-जीत/victory; नूर-प्रकाश/light; क़ासिद-संदेश वाहक/messenger; कुर्बत-नज़दीकी/closeness; अस्हाब-मालिक/lord

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Tere larajte hotho ki muskan likh du,

Tujhpe fakat kuch shabd kya, main puri kalam likh du।


Agar tum sath chalne ka paiman kar sako,

Main falak par apni mohabbat ka paigam likh du.


Tumse haar jana bhi meri bandagi hogi,

Tumhe paakar main, nusrat ke nishan likh du.


Tumhare chehre ke nur se chand bhi sharma jaye,

Tumhe angan mein bithakar, shitaro ki sham likh du.


Jo hawa teri chhuan saath layi ho, 

Us kaasid ko khud ka salam likh du.


Bada fakr hain mujhe, meri mohabbat par,

Khud ko tujhme shamil kar humare wajud ki pehchan likh du.


Teri qurbat se ho jaun main "raushan"

Tumko ashaab bana, tujhme khud ka jahan likh du.



Thursday, October 15, 2020

शिकायत कैसी

 जो सुनना ही नहीं चाहते,उनसे शिकायत कैसी,

जिनके रास्ते ही जुदा हो,उनसे शिकायत कैसी।


हम तो उन्हें खुद से ज्यादा तरज़ीह दिया करते थे,

ये जंग तो उनकी थी,मेरी खुद से बगावत कैसी।


कहने को तो हमनवां थे हम उनके,

दिल तोड़कर,प्यार जताने की ये चाहत कैसी।


माँगते तो हम अपनी जां भी दे देते उनको,

फ़ासले माँगकर,दिये गए वक़्त की मोहलत कैसी।


ताज़्जुब होता था उनके दोहरे रंग पर हमें,

चुप कराकर,रुलाने की ये नजाकत कैसी।


अब हर रोज मेरे अश्क, मेरी पलकें भिगोया करते है,

दर्द के समंदर में,ये आंखों की शरारत कैसी।


जहाँ "रौशन" सवेरा मुकम्मल ही नहीं,

वहाँ दीपक जलाने की इजाज़त कैसी।।

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शब्द संकलन:-

तरज़ीह-महत्व/importance; बग़ावत-विद्रोह/revolt; हमनवां-दोस्त/friend, फासला-दूरी/distance; मोहलत-वृद्धि/prolongation; ताज़्जुब-आश्चर्य/surprize; नज़ाकत-finicality; अश्क़-आँसू/tear

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Jo sun na hi nhi chahte,unse sikayat kaisi,

Jinke raste hi zuda ho,unse sikayat kaisi.


Hm to unhe khud se jyada tarzih diya karte the,

Ye jung to unki thi,meri khud se bagawat kaisi.


Kehne ko toh humnava the hm unke,

Dil todkar, pyar jatane ki ye chahat kaisi.


Maangte toh hum apni jaan bhi de dete unko,

Fasle maang kar,diye gye waqt ki mohlat kaisi.


Tajjubb hota tha unke dohre rang par humein,

Chup karakar,rulane ki ye nazakat kaisi.


Ab har roj mere ashq,meri palkein bhigoya karte hai,

Dard ke samandar mein,ye aankhon ki shararat kaisi.


Jahan "raushan"savera mukammal hi nahi,

Wahan deepak jalane ki izazat kaisi.




Tuesday, October 13, 2020

तलाश

 ताउम्र तलाश रही,हम-नफ़स को पाने की,

यादों को समेटकर,एक कारवाँ बनाने की।


वो आयें, ठहरें और चले गए,

शायद जरूरत नहीं थी,उन्हें किसी बहाने की।


दर्द की लौ मुस्लसल बढ़ती ही जा रही थी,

मेरे आब-ए-चश्म की नाकाम कोशिश रही उसे बुझाने की।


तर्के-उल्फ़त के अंजुमन में,मैं अकेला कहाँ था,

असरार खुल गई थी,रिवायत-ए-ज़माने की।


अतीत तारीकियों में गुम सी हो गयी लगती हैं,

शायद 'रौशन' भविष्य हो,कोशिशें कुछ चरागाँ जलाने की।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

हमनफ़स-प्रियतम/friend;मुस्लसल-लगातार;

आब-ए-चश्म-आँसू/tear;तर्के-उल्फ़त-बिछड़ना/break up;अंजुमन-सभा; असरार-राज/secret;रिवायत-प्रथा/custom;तारीकी-अंधेरा/darkness;चरागाँ-दीपक/lamp

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Ta-umra talaash rahi,hum-nafas ko pane ki,

Yadon ko sametkar,ek karwan banane ki.


Woh aayein,thehre aur chale gye,

Shayad jaroorat nahi thi,unhe kisi bahane ki.


Dard ki lau,musalsal badhti hi jaa rahi thi,

Mere aab-e-chasm ki naakam koshish rahi use bujhane ki.


Tarke-ulfat ke anjuman mein,main akela kahan tha,

Asrar khul gayi thi,rivayat-e-zamane ki.


Ateet tarikiyon mein gum si ho gayi lgti hai,

Shayad 'raushan' bhavisya ho,koshishe kuchh charagan jalane ki.




Sunday, October 11, 2020

उम्दा तेरी छाया

 खुदी को भूल बैठा हूँ,जब से तुझे पाया,

अब ना धूप लगती हैं, बड़ी उम्दा तेरी छाया।


मुकम्मल तू करा देगा,मेरी राह-ए-मंज़िल को,

बड़ी करिश्माई सी हैं, ईश्वर तेरी माया।


खोल ज्ञान चक्षु तू मेरे,मुझे कोई रास्ता दिखा,

कृपा इतनी सी कर दे,पलट दे मेरी काया।


सुना था कण-कण में,झलक तेरी ही मिलती हैं, 

क्यूँ मन के मंदिर में,तुझे खोज ना पाया।


मैं पापी,पतित,अपराधी हूँ तेरा,

मुझे अब माफ भी कर दे,हूँ दर पर  तेरे आया।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Khudi ko bhul baitha hu ,jab se tujhe paaya,

Ab na dhoop lgti hai,badi umda teri chhaya.


Mukammal tu kara dega,meri raah-e-manzil ko,

Badi karasmaai si hai,ishwar teri maaya.


Khol gyan chakshu tu mere,mujhe koi raasta dikha,

Kripa itni si kar de,palat de meri kaaya.


Suna tha kan-kan mein jhalak teri hi milti hai,

Kyun man ke mandir mein ,tujhe khoj naa paaya.


Main papi,patit, apraadhi hu tera,

Mujhe ab maaf v kar de,hun dar par tere aaya.




Friday, October 9, 2020

बाबा(दादा जी)

 अभिमान भी वो,वरदान भी वो,

और मेरे दिव्य अरमान भी वो,

मेरी ज़मीं उनसे ही हैं,

और मेरे आसमान भी वो।


श्रेष्ठ है वो,सर्वश्रेष्ठ है वो,

घर में सबसे ज्येष्ठ है वो,

पथ प्रशस्त कराने के,

मार्गदर्शक वो और मार्ग भी वो।


बचपन में वो मुझे खुद के समीप सुलाया करते थे,

हर रोज नई-नई कहानियाँ सुनाया करते थे,

अब रोज तरसता हूँ, फिर बचपन में जाने को,

जब वो मुझे ज्ञान-दीप दिखाया करते थे।


ईमानदारी के छाँव तले,मेरा बचपन पूर्ण हुआ,

सीखी उनसे नायाब कलाएँ, गूढ़ रहस्य परिपूर्ण हुआ,

हर मुराद पूरी की,लाड़-दुलार से पाला हमको,

प्यार और ममता की परिभाषा,उनसे ही संपूर्ण हुआ।


विशिष्ठ व्यक्तित्व के धनी हैं वो,

और प्रखरता बढ़ाती उनका शान,

'बाबा' के चरणकमलों में,

मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Abhimaan bhi woh,vardan v woh,

Aur mere divya armaan v woh,

Meri jameen unse hi hai,

Aur mere aasmaan bhi woh.


Shresth hai woh,sarvashreshth  hai woh,

Ghar me sbse jyeshth hai woh,

Path prashast karane ke,

Margdarshak woh aur marg v woh.


Bachpan mein woh mujhe khud ke sameep sulaaya karte the,

Har roz nayi-nayi kahaniyan sunaya karte the,

Ab roz tarasta hu m phr bachpan mein jane ko,

Jb woh mujhe gyan-deep dikhaya krte the


Imaandari ke chhav tle mera bachpan purn hua,

Sikhi unse nayab kalayein,gudh rahasya paripurn hua,

Har muraad puri ki,laad-dulaar se pala humein,

Pyar aur mamta ki paribhasha unse hi sampurna hua.


Vishisht vyaktitva ke dhani hai woh,

Aur prakharta badhati unka shan,

'Baba' ke charankamlon mein,

Mera koti koti pranam




Wednesday, October 7, 2020

बाद-ए-सबा

 रात की तारीकियों में,क़मर की दख़लअंदाज़ी,

जैसे लगता हैं पट खुला हो आसमान का।


शम्स की पहली किरण के संग,बाद-ए-सबा की खुशबू,

जैसे फ़ज़ा में पीयूष घोल दिया हो किसी ने।


विहंग के कलरव,जैसे बयाँ कर रहे हो,

कितने खूबसूरत होते हैं, जिंदगी के शोर।


अनिल का मंद-मंद चलना,जैसे वो इल्तला कर रहा हो,

मंज़िल पाने के लिए चलते रहने का महत्व।


उपवन में सुमन की माधुर्यता,

जैसे लगता है इठला रही हो,गुलशन अपने सौन्दर्य पर।।

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शब्द संकलन:-तारीकियाँ-darkness; क़मर-moon

शम्स-sun;बाद-ए-सबा-morning breeze; पीयूष-elixer of life/ambrosia;विहंग-bird; अनिल-air; सुमन-flower;

गुलशन-garden

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Raat ki tarikiyon mein, qamar ki dakhalandazi,

Jaise lgta hai pat khula ho aasmaan ka.


Sams ki pehli kiran ke sath,baad-e-sava ki khusboo,

Jaise faza me piyush ghol diya ho kisi ne.


Vihang ke kalrav, jaise bayan kar rhe ho,

Kitne khubsoorat hote hai zindgi ke shor.


Anil ka mand-mand chalna jaise  iltala kara rha ho,

Manzil pane ke liye chalte rehne ka mahtva.


Upwan me suman ki maadhuryta,

Jaise lagta hai ithla rhi ho,gulshan apne sondraya par.






Tuesday, October 6, 2020

नेमत

 मैंने अम्मा के रूप में, ममता की नई मूरत देखी हैं,

दुनिया के दोहरे चेहरे में,एक पवित्र सीरत देखी हैं।


कैसे कहूँ,आँखों में आईने नहीं होते?

मैंने उनके चेहरे में,खुद की सूरत देखी हैं।


उनके बिना जिंदगी थम सी जाएगी,

कैसे बताऊँ, मैंने उनके बिन खुद से बगावत देखी हैं।


कैसे जोड़ दूँ, हर रिश्ते को खून के बंधन से?

मैंने उनके हृदय में,निश्चल प्रेम और आस्था देखी हैं।


कैसे कह दूँ, खुदा नहीं इस जहान में?

मैंने ईश्वर की इतनी बेशकीमती नेमत देखी हैं।।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

Maine amma ke roop mein,mamta ki nayi moorat dekhi hai,

Duniya ke dohre chehre mein,ek pavitra sirat dekhi hai.


Kaise kahu aankhon me aaine nahi hote,

Maine unke chehre mein,khud ki soorat dekhi hai.


Unke bina zindgi tham si jayegi,

Kaise btau,main unke bina,khud se bagawat dekhi hai.


Kaise jod du,har ristey ko khoon ke bandhan se,

Maine unke hriday mein,nischal prem aur aastha dekhi hai.


Kaise keh du khuda nhi iss jahan me,

Maine ishwar ki itni beshkeemti nemat dekhi hai.

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

शब्द संकलन:-

मूरत-प्रतिमा, सीरत:-स्वभाव;नेमत-वरदान/उपहार

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★




सोहबत

ख़्वाबों को हक़ीक़त दो,इन गलियों का ठिकाना दो, अपनी जुल्फ़ों को ज़रा खोलो,मुझे मेरा ठिकाना दो मयकशी का आलम है,मोहब्बत की फिज़ा भी है, आखो...